होके गैरों सा क्या मिला तुझे क्या मिला मुझे
बस दर्द में लिपटा तू यहाँ मिला मुझे मैं वहाँ मिला तुझे
खुशियाँ दूर हुई सुकून रहा ना पास हमारे
बस गंगा जल सा बहकर तू यहाँ मिला मुझे मैं वहाँ मिला तुझे-
बचाकर रखना गंगा को जरूरत कल भी बहुत होगी
यक़ीनन आने वाली पीढ़ी इतनी पाक भी नहीं होगी-
वह
गंगा किनारे
कपड़े धो रही है..
मन ही मन
सफ़ेदपोशों कि
काली करतूतों पर
रो रही है...
वस्त्रों पर साबुन लगाती
पत्थर पर पछीटती
कभी हाथों से मसलती
कभी इकठ्ठा कर घूँसे बरसाती
तो कभी पानी में खंगालती...
नहीं निकाल पा रही है
कपड़ों की धवलता में
छुपी मलिनता को..
सफ़ेदपोशी
भीतर तक काली है..-
बहती है पवित्र गंगा धरातल से तो कभी पलकों तले
अशुद्ध मन को शुद्व करती जैसे बहती गंगा पावन भूमि तले
विरक्त हो कर भी सबसे महादेव के हैं जटाओं में बसती
कभी माँ बन कर आँसू पोछती तो बह जाती कभी पलकों तले-
नाखुश है गंगा
संघर्रषरत है अस्तित्व के लिए
इसलिए निकाल फेंका मगरमच्छों को ...
अपने जीवन से
तिलमिलाए मगरमच्छों ने
किनारे आकर शोर मचाया
कि गंगा को ...
हीरे मोतियों की ख्वाहिश है
कहता है
सितारे भी नहीं ठहरते
अब उसके दामन में लांछन रख दिया है उसने
कि गंगा लोभी और चरित्रहीन है
मैं प्रमाण हूँ
मुझसे ज्यादा
कौन रहा है उसके पहलू में।-
पंडिताईन...❤️
अपने इश्क़ को ढूढते रहे हम कश्मीर से कन्याकुमारी तक
लेकिन जिदंगी हमारी लिन थी गंगा जी की संध्या आरती में-
ढूंढ़ती नही हैं पाकीज़गी बच्चों में
माँ खुद गंगा होने का हुनर रखती हैं-
सिद्धांतो के नैतिक मूल्य
गिराए जाते है अक्सर
इसलिए कि.......!
'किसलिए' का प्रश्न उत्पन्न हो
'बाजार' को भीड़ पसंद है
और 'भीड़' को बाजार
आखिर क्या है....?
उस पर्दे के पीछे...
पर्दा जो उठ गया तो फिर
हंगामा ही मच जाएगा
और चाहिए भी क्या
'मन' की मलाई को
'तन' की सफाई को तो
'गंगा' मैली होनी ही है-
तू गंगा की निर्मल लहरों में बहता इश्क है...
घाटों का सूकून और मेरा ठहराव इश्क है!!-