सपनो के तारे बुनते रहिए
दुनिया की भीड़ भरी दुनिया मे
खुद को ना खो देना।।
कुछ वक्त खुद के लिए भी निकाल लेना
कुछ सपनो को हम संजो तो लेते है
मगर पूरा नही कर पाते है
दुनिया का रंगमंच ही ऐसा है
जहाँ लोग अपना किरदार निभा
कर चले जाते है।।
खुद का अस्तित्व बनाने के लिए
खुद से मिलते रहिए।।
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" तो मै क्या करूँ ?"
इसका जवाब दुसरो से नहीं खुद से पूछो !!!
क्योंकि दूसरों से ज्यादा वो तुम्हारा साथ देगा !!-
मैंने नहीं छोड़ा कभी सच बोलना ,
तुलना मिरी ना हरिश्चंद्र से करो ।
कह दो कि हूँ इंसान जीता जागता ,
डरना पडे तो आप बस खुद से डरो ।
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क्या करे कुछ समझ नहीं आता ,
फिर खुद में ही खो जाते है ,,
सबको तो समझा जाते है,
लेकिन फिर खुद से हार जाते है।-
मैं जानता हूं-३.............
चुप रहो कुछ न कहो मैं ये फ़र्क बख़ूबी जानता हूं
गऱीबी इतने क़रीब से देखी है मैंने कि सब बिखरा
मेरा अपना सिर्फ़ पैसों की वज़ह से
इस ज़िंदगी में मैं पैसों का महत्त्व जानता हूं
ग़रीब होना ग़लत नहीं सीख मिलती है हमेशा
पर सब जब ख़तम सा हो जाये सबकुछ
तो कैसे कटती है ये ख़ुद पर हुआ सितम जानता हूं
चाहे हालात अच्छे हो या न हो तुम्हारेअक़्सर
लोग ख़ैरियत से पहले हैसियत पूछ लेते हैं
बताने की ज़रूरत नही मैं कितना हूं कहां तक हूं
दूसरे क्या बताएंगे मैं औक़ात अपनी बख़ूबी जानता हूं
चुप रहो कुछ न कहो मैं सारे फ़र्क बख़ूबी जानता हूं
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अब अपना ही तिलिस्म तोड़ नहीं पा रहा हूं मैं,
मेरी आदत थी सब को मनाने की अब खुद ही से रूठा जा रहा हूं मैं.-
गुमनामियों में तफसील होकर बहुत सुकून मिलता है!!
ज्ञान नहीं देता जब कोई खुद का दिमाग चलता है!!!-
टिमटिमाता दिया रोशनी देगा
कभी खुद में झांक कर देखो
खुद से एक बार मिल कर देखो ।
अंधेरे की आहट से खौफ होगा
जरा ऊससे तुम संभल कर देखो
खुद से एक बार मिल कर देखो ।
गहराई तो है जिंदगी में भरी
उससे ऊपर उठकर तो देखो
खुद से एक बार मिल कर देखो ।
जिंदगी जीनी पड़ती है अकेले
अकेले दुनिया से लड़ कर तो देखो
खुद से एक बार मिल कर देखो ।
अंजान सड़कों से दोस्ती भी होगी
ड़र को अंदर से हटा कर देखो
खुद से एक बार मिल कर देखो ।-
तन्हाई का मंज़र मुझ पर भारी है,
दिल को तुमसे इश्क़ है या बीमारी है!
बेचैनी हैं साँसों में बेताब हूँ मैं,
जो टूटा पल भर में ऐसा ख़्वाब हूँ मैं,
अब तो जिंदा रहना भी दुश्वारी है.!
तन्हाई का..
आज वफ़ा में मिट जाने की हसरत है,
ख़लिश है सीने की यारों या चाहत है,
ख़ुद से कैसी जंग की ये तैयारी है.?
तन्हाई का..
जिस्म की ख़्वाहिश जैसा ये आसान नहीं,
रूह की हसरत पल भर की मेहमान नहीं,
उल्फ़त की तलवार सनम दोधारी है.!
तन्हाई का..
सिद्धार्थ मिश्र-