ऐ जिंदगी सुन क्यूँ मुझे, तूँ ऐसे बेताब करती है
कोई ऐब है क्या मुझमें, जो इतना हिसाब करती है।
क्यूँ सहम रहे हो तुम, सिर्फ एक नाकामी के डर से
राह-ए-मुश्किलें ही तो, इंसान को कामयाब करती हैं।
धोखा खाकर आये हो,चलो महफ़िल जमाते हैं
गम भुलानें का काम तो, दो घूट शराब करती है।
एक जुगनूं को वहम हो गया है, उजाले पे हुकूमत का
उसे कौन समझाये कि, रोशनी तो आफताब करती है।
दोस्ती किताबों की, कभी दगा नहीं करती "नवनीत"
ये तो हिस्से में तुम्हारे, यूँ सारे खिताब करती है।-
मेरी जिंदगी की किताब में, तुम ही तो वो गुलाब हो, जिसको समझकर ख़िताब मैने सीने से लगाए रखा।।
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गम-ए-फिराक का एहसास, मैं साथ लिए फिरता हूँ।
कल्ब में अपने तेरे लिए खिताब लिए रखता हूँ।
बेशक मेरी बातों में इताब होगा,
पर मेरी बातों में तेरे हर सवाल का जवाब होगा।-
मैं अनपढ़ ही सही था,
पढ़-लिखकर, दिल का
गुलाम हो गया..
गँवार था तो कोई
पूछता नहीं था,
पढ़-लिखकर बदनाम
सर-ए़-आम हो गया..!-
ये जिंदादिली का खिताब पाने के लिए, दिल का मुर्दा होना जरूरी है क्या?
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याद में उनके गंवाए एक-एक पल का हिसाब उन्हें देदूँ क्या?
जो किताब में दब के चिपट गया है वो सुखा गुलाब उन्हें देदूँ क्या?
लोग कहते है उनके प्यार में पड़के शायर बन गए हो 'पंडित'।
कमबख्तों! अब अपने हुनर का ख़िताब भी उन्हें ही देदूँ क्या?-
लिखना कुछ अलग चाहता हूँ
खिताब नहीं
लोगों के दिल जीतना चाहता हूँ-
ना चाहते हुए भी
मेरा हर खिताब तुझे ही जाता हैं
मेरे लिखने की वजह तुम ही हो
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थोड़े से सुख के लिए क्यूँ , अपने नाम ये खिताब किया जाय,
खत्म हो जाएंगी ये दरारें ,क्यूँ बढ़ाकर किताब किया जाय।
हालात ने बात दिया मुझे, की वो हमारे कितने हैं,
तुम ही बताओ अब ,अपनो से क्या हिसाब किया जाय।।-