कुछ नज़रें हैं जो आज इस क़दर बेगानी हैं
जानी पहचानी सूरतें भी अब अनजानी हैं
वो जो बड़ो को तुम छोटो को आप कह रहा है
उसका लहजा बता रहा है कितना खानदानी है,
पर निकलते ही जिसने अपनी जब्त खोदी
साफ दिख रहा है उसकी नई नई जवानी है।।
शादाब कमाल-
गालियॉ खाकर चुप पड़ा रहा मंदिर की सीढ़ियों पे
वो खानदानी श्रद्धालु था,मैं ठहरा इक बच्चा यतीम ।-
आवारा सा है वो लड़का पर मोहब्बत रूहानी करता है,
कद ऊँचा रख कर भी वो किरदार खानदानी रखता है l-
आदमी परखने की ये भी एक निशानी है...!
गुफ्तगू बता देती है, कौन कितना खानदानी है.!-
कल तक जो साथ थे हमारे आज वो कहानी हो गए
जो किस्से हम भूलना चाहते थे वो जबानी हो गए
इश्क़ में जो साथ जीना चाहते थे वो खानदानी हो गए
पता ना चला हमारे आंसू कब उनके लिए पानी हो गए-
वो अपने पल्लू में ख़ानदानी रखते है
और हम है कि इधर उधर झाँक लेते है
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ये जो रंज ओ गम की कहानी हैं
सबकी सब अपनों की मेहरबानी हैं...
तुम सबने ही तो सिखाया हैं कि
किसी से क्या क्या बात छुपानी हैं?...
हर जिद्द की वजह ना ढूंढियेगा
समझ लो ये पुरखों की निशानी हैं...
तकव्वुर यह किया कर आखिर
कोई शख्स कितना खानदानी हैं?...
रास्ते इस कदर मुहाल हैं"जयंत"
पीछे हैं हसरतें ,आगे जिन्दगानी हैं...
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हाँ ! सच है आये थे घुसपैठी बाहर से ,
लेकिन पनाह देने वाले ऊँचे खानदानी हैं ...-