झुकता नहीं तो काट ले तू सर मेरा ऎ जिन्दगी...
मुझसे मेरे गुरुर की कुछ तो कीमत वसूल कर...-
मसले जुदा है बाकी दुनिया से मेरे...
मैं गैरों से ज्यादा खुद से लङता रहा...-
जब मैं जाऊंगा तो बताकर थोङे ही जाऊंगा
नजरें चुरा लूंगा नजर मिलाकर नहीं जाऊंगा...
मेरे मिजाज की तासीर तो तुम जानते ही हो
जिन्हें चाहता हूँ उनसे जताकर नहीं जाऊंगा...
और वो जो एक एक कर छिटक गये मुझसे
सनद रहें उनसे फिर टकराकर नहीं जाऊंगा...
बहुत शुक्रिया उनका जो खैर ख्वाह रहे मेरे
उनका तो ये अहसान भूलाकर नहीं जाऊंगा...
कुछ ख्वाब जो "जयंत" अधूरे ही रह जाएंगे
ये तो तय हैं कि कभी लौटकर नहीं आऊंगा...
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जिन पर लुटा रहे हो तुम दुनिया की तमाम दौलतें...
यकीन मानो वो लोग कफन भी तुम्हें माप कर देंगे...-
मायने ये नहीं रखता कि किससे क्या ताल्लुक हैं...
मसला तो यह हैं कि कौन किस तरह पेश आया...
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कभी कभी हर बात से फर्क पङता हैं मुझको...
कभी कभी हर बात मुझ पर बे-असर रहती...-
औरों को कब तलग मनाते रहोगे जनाब...
कभी खुद से भी पूछना कि हाल कैसा हैं...-