कि थी ख़्वाहिशे मेरी भी, तेरे साथ जीने की ।
तूने अहमियत न दी मुझे, अपने साथ रखने की ।।-
चाहने से कोई चीज अपनी नहीं होती
तमन्ना तो बहुत पर हर ख्वाहिश पूरी नहीं होती
मुस्कुराते तो है पर अब वो खुशी नहीं होती
क्या करें कभी वक़्त तो कभी किस्मत सही नहीं होती-
ख़्वाहिश-ओ-अरमान जला दिए सारे
अब उनकी ख़ाक खंगालुंगा मैं
वजूद ख़ुद का बिखर सा गया है
तुम्हें कैसे संभालुंगा मैं!-
सुन एक बार फ़िर
तेरी बाहों के आग़ोश की जुस्तजू रखते हैं
तेरी बाहों में सिमटने की ख़्वाहिशें रखते हैं
ख़ुद को तेरी जानिब बेकाबू होने देना चाहते हैं
जब तस्वीर में तेरी शरारत भरी नज़रें देख लेते हैं-
ख़्वाहिशों की परछाई का पीछा करते-करते हम आ पहुँचे एक ऐसे जहान में ।
जहाँ फड़फडाने लगा है इंसानियत का दीपक, उठ रहे स्वार्थमयी तूफान में ।।-
कुछ ख़्वाहिशें दब सी जाती है कुछ दबा दी जाती है,
तुम लड़की हो कहकर कुछ पाबंदी लगा दी जाती है।
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ख़्वाहिशें तो इतनी हैं कि मुठ्ठी में कर लें सूरज चाॅ॑द तारें
सारे जहाॅ॑ में बुलन्द कर लें अपने सितारे-
ख़्वाहिशें ज़िस्म-ओ-जान की मजबूरी है.!
पर आपके बग़ैर सब की सब अधूरी है.!!-