इक गजल तैयार करने जा रहा हूँ,
तुम्हें मैं अशआर करने जा रहा हूँ!
नहीं और तेरा सर झुकने दूँगा मैं,
इसे मैं अब ख़ुद्दार करने जा रहा हूँ!
कमाल उंगली का मेरी देख जरा,
अब तुम्हें सरकार करने जा रहा हूँ!
मेरा बुनियाद का होना ही है ज़रूरी,
तुमको अब मीनार करने जा रहा हूँ!
तेरी खनक आती दिल के दहलीज़ पे,
तुम्हे दहलीज़ से घर करने जा रहा हूँ!
चले बस तो ये लिख दूँ आसमां पर,
"राज" तुम्हे अपना करने जा रहा हूँ!
_राज सोनी-
हमें समंदर का इतना यूँ ख़ौफ़ न दिखाओ मियां,
हमने उसके हंसते हुए गालों में ही भंवर देखे हैं!
हमें आसमाँ के चमकते तारों से नहीं है लेना देना,
हमने उसकी आँखों में सितारे उतरते हुए देखे हैं!
हमें सात सुरों की सरगम लगती है बेसुरी लयताल
हमनें उसके पायल के घुंघरू की खनक देखी है!
हमें सावन की काली घटाओं से नही पड़ता फर्क,
हमनें उसकी बहकती लटों की आवारगी देखी है!
हमें सुर्ख गुलाब मासूमियत की मिसाल ना दो तुम,
हमनें उसके दहकते हुए लबों की नजाकत देखी है!
हमें कभी लग ही ना पाएगी किसी की बुरी नज़र,
हमनें उसके माथे, नजर की काली बिंदी देखी है!
हमें तुम चाहे कितना ही बेवजह बहका दो "राज"
हमनें उसकी मांग में मेरे नाम का सिंदूर देखा है! _राज सोनी-
न कोई नज़्म, न कोई गज़ल लिखूंगी,
निगाहों में कैद तेरी मुस्कुराहट लिखूंगी।
अल्फ़ाजों को तो समझ लेगा ये ज़माना,
तेरे लिए पहनी चूड़ियों की खनक लिखूंगी।
शोर भी सुन के सबने अनसुना कर दिया,
जो तुमने समझी, मैं वो खामोशी लिखूंगी।
अरसा हो गया हमारे नैनों को टकराए हुए,
झरोखों से झांकती आंखों का इंतजार लिखूंगी।
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सिक्कों की खनक हमेशा अच्छी लगती है
मगर कुछ सिक्कों की खनक होकर भी
हमें सुनाई नही देती।-
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उसकी याद में अल्फाज,
पाजेब बना कर पहना था मैंने।
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सुनों
याद है तुम्हें,
वो पायल
छोटी सी ...आलता लगी
नाजुक पैरों में,
पसंद थी मुझे धुंधरुओ से सनी,
पायल लायी थी माँ दो धुँधर वाली ,
पहन कर दिन भर आँगन में,
छम-छम उफ़ान सी ,
पूरे घर में दौड़ लगाती ,
हाँ मेरे पैरों में कम,
और ..
आँगन में ज़्यादा
खनकती ,
पायल मेरी,
आलता लगी,
पैरों में...
सुनों,
जानते हो तुम,
अब पायल नही पहनती हु,
न ही आलता ...लगाती हु पैरों में,
अब भी सारा दिन,
खनकती है धुन ,
पायल की
कानों में मेरे,
आँगन में ,
अब भी,
वही धुन का राग,
छमछम सा,
रम गया,
मन में,
सबके...-
इत्र भीगी रात
अहा पारिजात
रातरानी सजी
चाँद तारो जैसी
रूप चौदस का
हैं अमावस का
कहानियाँ छोड़ो
जरा छत दौड़ो
विभावरी हंसी
चौकसी करसी
जाग जाग उल्लू
लक्ष्मी के पहलू
...ब्रजेश
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"सुनी इक पायल की खनक"
जाग उठी अंदर से इक धीमी सी धड़क
नजरों के आंचल में ना आये अभी पलक
छेडूं कुछ ताल या फिर करूँ कोई पहल
दिन जाये न गुजर-मन जाए न मचल
सुनी इक पायल की खनक।-
तेरी अँगड़ाई में छुपे प्यार को,
मेरा बिछोना आज भी सहेज के रखता है।।
तेरी हंसी की खनक को दबा कर,
ये हवा आज भी छेड़ा करती है।।
वो संगीत जो तेरी लय से जुड़ा था।।
जिसका काहिल ये दिल
भला किस की सुनता है?-