हमसे ज़रा फासला ही रखना तुम,
हम ज़ुबान ज़रा कड़वी रखते हैं।-
अपने ज़ुबान में हमेशा कड़वी बातें ही रखना,
खरी बातें और तीख़ी जुबान ही रखना अपनी,
लाख दुश्मन क्यों न बन जाएं तुम्हारे,
हमेशा सच्ची बातें ही बोलना,
क्योंकि ज़ुबान तुम्हारी कितनी भी कड़वी क्यों ना हो,
दिल हमेशा अपना साफ़ और कोमल रखना।
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मेरी बातें तुमको कड़वी तो लगती है होगी,
पर सच बताओ शुगर मीठा खाने से होता है या नीम खाने से...!-
ये दुनिया है, बेवजह कहा कुछ होने देती है?
मोहब्बत में भी तो ये वजह ढूँढ ही लेती है ।-
बेवजह ही तो है , ये प्यार ही है ,
गर है वज़ह तो , तो व्यापार है ।-
भूलना आसान है याद रखने से,
फिर भी लोग कड़वी, अप्रिय बातों को याद रखते हैं ।।-
नीम हूँ कड़वी बाते ही करूँगा क्योंकि,
तुम्हारी सेहत से मुझे खिलवाड़ पसंद नहीं..!-
जो आपके अंदर हो वही निकल के आता है बाहर,
लाख मिश्री चबाने से जुबान मीठी नही हो जाती..
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कड़वी सच्चाई-
सत्य बोलने के लिए सभी प्रेरणा देते हैं
किन्तु सत्य सुनना कोई नहीं चाहता है।
क्योंकि सत्यता में लोगों की बुराई भी आती है।
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मेरे शहर में ये हर तरफ बवाल क्या है
कोई पूछो उनसे के सवाल क्या है।
हाँ भुख से बिलख रहे ग़रीबों के बच्चे
ग़ैर मज़हबी हराम है तो हलाल क्या है।
चलो ख़िलाते है दो वक़्त की रोटी उन्हें
है पेट तुम्हारा भरा हुआ ख़्याल क्या है।
मुफ़लिसी में जीने से मरना है बेहतर
अमीरी के चौक पे ये अकाल क्या है।
माना के हम जीत लेंगें जंग-ए-जहान को
जब अपने ही ख़िलाफ़ है तो हाल क्या है।
मज़हब के नाम जो ख़ेल रहे हैं ख़ूगर्क
शहर जले बातों से तो मशाल क्या हैं।-