पढ़ पढ़कर बूढ़े हो गए,
मिला ना कुछ भी हाथ,
लाठी खाए....जेल गए,
मिला न उनको सुकून फिर भी,
साम दाम दंड भेद की नीति अपनाकर,
कर रहे ज़ुल्म वो हज़ार,
मर रहे बच्चे नौकरियों के पीछे,
फिर भी दिख नहीं रहा सरकार को,
मस्त मौला बनकर घूम रहे वो संसार को,
झेल रहे बच्चे इनके हर ज़ुल्म को,
सिर्फ़ अपने हक अधिकार की मांग के लिए,
रो रहे बच्चे अपने भविष्य के खातिर,
बच्चों की चीखती चिल्लाती आवाजों से,
जू तक नहीं रेंगी उनके कानों में,
सरकार बैठी गूंगी अंधी बहरी बनकर,
बच्चों के भविष्य को बर्बाद करके।
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बस इतना समझलो टुटा हुआ दिल है,
बस काँच समेटना रह गया है
खुद को दूसरों से अलग रखो....,
वरना दुनिया में हर कोई,
एक दूसरे की नक़ल तो कर ही रहे है..।
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महिलाओं को सशक्त बनाने,
वो अपनों को पीछे छोड़कर आई थी,
संकल्प लिए अपने मन में उसने,
नारी के हक़ अधिकार के लिए लड़ गई,
सहे थे उसने अपमान बहुत,
वो कीचड़ से भी नहाई थी,
नारी को शिक्षित करने,
देश में शिक्षा की एक अलग मशाल जलाई थी।
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सबसे लड़कर की फतेह उसने,
शिक्षा की जोत जलाई थी,
कर हर महिलाओं को शिक्षित उसने,
पूरे भारत में शिक्षा की रौशनी फैलाई थी।-
रूबरू होते हैं कभी ख्यालों में,
मेरी रूह भी अपनी एक दास्तान सुनाएगी।-
किया था जिससे मोहब्बत,
आज वो दगा दे गए,
लड़ा था जिसके खातिर अपनों से,
आज वो बीच राह पर छोड़ गए,
बेशुमार इश्क़ मोहब्बत किया था हमने जिसे,
वो एक नज़र भी नही देखते हमें,
मांगा जिसको हर दुआ में हमनें,
आज वो रोता छोड़ चल दिए हमें,
मोहब्बत तेरी मोहब्बत से नफ़रत सी हो गई,
जिंदगी की राहों में खुद को अकेला ही पाया।
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कभी कोई ऐसा मिला ही नहीं..
जिसके सीने में सर रख कर शुकून मिले...
हर परेशानी से दूर,
उसके साथ से खुदको महफूज पाए।
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