नवयौवनी बाला
अधेड़ उम्र साजिंदे का
अपनी शर्तों पर शृंगार कर
उसे पा जाती है अपने अनुरुप
जकड़ लेती है इस तरह
अपने मोहपाश में
कि वो गिरा बैठता है आईना
...और फिर एक दिन
जब अंतिम पहर होता है
इस आकर्षण का
तो खुलता है एक नया आईना
चटक जाती है उसकी तरुणाई
और वो साजिन्दा
दूर जाने की फिराक में
चलता चला जाता है;
आज वो साजिन्दा आकाश है
तरुणी धरा, हम सब रोज निहारते हैं
वो आकर्षण... क्षितिज कहकर!
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