नदान हू
न..ना..समझ नही
( अनुशीर्षक में पढ़ें )-
और कुछ वो जो कहा जाता नहीं..
and some people are like winter breeze
with them, you learn to embrace yourself-
हसरत है रात
और तुम इसी हरसत पर टँका इक चाँद
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न ये हसरत मेरी है और न वो चाँद...-
whenever I see them standing against something which cannot ruled out, I can't help myself but question, "is it really worth of... of all the fight they have taken or of all the fight they are ready to take after losing every time?"
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yesterday when I voiced out this thought to Nandita, she replied with her as usual simple smile, "maybe someday you will have the answer to that question... after all it's all about how madly you believe in something."-
हम दोनों में आज भी फ़र्क़ उतने ही गहरे हैं
जितने की पहली मुलाकात में हुआ करते थे
बस, अब ये बिन वजह खलते नहीं-
अक्सर अल्फ़ाज़ वो कहने से कतरा जाते हैं
जो आपको अंदर से कचोट रहा होता है
ऐसी हर वो बात,
खामोशी कहीं न कहीं ज़ाहिर कर ही देती है
और मुझे ऐसी ही कोई खामोशी साझा करनी है, तुम्हारे साथ-
तुम्हारी और मेरी कहानी में
फर्क मात्र किरदारों का है
और ऐब संपूर्ण समाज का
न सच की परिभाषा में उतारा जा सकता है उन्हें
न झूठ कहकर झुठलाया जा सकता है
वे बहरूपिए हैं, और मौकापरस्त भी
वे खोखले शब्दों की खनक से हैं
और खनकते सुनाई भी नहीं देते
पर तुम्हारी यही तो पसंद है न?-
कभी चाहत पूरी न हो सकी मेरी
जिन्हें चाहा, वो मेरे हुए नहीं
जिनकी चाहत बनी, उनकी मैं न हो सकी
जिनसे निभी,
वो नसीब में रिश्ते बनकर आ न सके
और बेनामों पर सवालों के पहरे बहुत थे
जिनसे बंधी,
वो मेरे दायरे बन गए
ऐसे सभी रिश्ते दिल का भार बनकर रह गए
मुझसे पूछा होता जो किसी ने
मैं बताती जरूर
"ये ख़्याल ही बेहतर है चाहत का
जमीं पर तो बस, कब्रें बिछी हैं"-