हृदय कुंड में,क्रोधाग्नि धधक रही
मान की ठूंठ सी,अहम् की लकड़ियाँ....
लोभ की लौंग धूप,कपूर
आज सुगंध रहित
अस्नेह का घी और
समिधा देते जाना,,,,
जलकर खाक हो जाना,,,
निश्शेष राख हो जाना
क्रम टूटता नहीं,,,
इस बार जलना नहीं
गलना है,,हृदय को
अश्रु नीर से शांत,प्रशांत करना,
क्षमा की भभूत मस्तक लगा,
दिव्यता पाना
यही पर्व,पूजा,विधान
का फल है,,न मिलता कल है,,
क्षमावाणी पर्व पर समर्पित
यही तो सच्चा श्रीफल है!!
2.9.20 क्षमावाणी पर्व
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