गांवों में हैं
फटेहाल नौनिहाल
व भूखा किसान
फिर भी
हुक्म के तामील में
लिख रहे
मेरा भारत महान-
वर्षों से हैं दबे जो,
मैं वो भाव लिखती हूँ।
तिमिर नहीं,
मैं चिराग लिखती हूँ।
मंज़र नहीं,
मैं वृत्तांत लिखती हूँ।
हाँ मैं आग लिखती हूँ!-
प्रेमिका की आँखें
वो आईना हैं
जिसमें पुरुष
अपना सबसे सरल रूप
देखता है-
"प्रेमिकाओं द्वारा
लिखे गए "प्रेमपत्र"
ईश्वर के समक्ष
अर्पित किए गए
भोग हैं।"
©सृष्टि सिंह-
मन के भावों को उड़ने दो
उन्मुक्त भावना से भरकर
परधीन विचारों से लड़कर
जो शून्य-पटल पर उपजे हैं
उन्हें शून्य-शिखर से जुड़ने दो
मन के भावों को उड़ने दो
मन के भावों को उड़ने दो
डगमग होते पर रुकें नहीं
गिरते-पड़ते पर झुकें नहीं
बन हवा विलय सर्वत्र रहें
उनको सुगंध से जुड़ने दो
मन के भावों को उड़ने दो
मन के भावों को उड़ने दो
जो अंधियारों में जलते रहें
अनजान पथों पर चलते रहें
वे स्वयं दीप, खद्योत, अर्क
उन्हें निज उजास से जुड़ने दो
मन के भावों को उड़ने दो-
किसी ने कहा
कि यादों को एक कागज़ पर लिखो
और जला दो !
मैने जला दिया।
अब जब भी कहीं आग देखता हूँ,
तुम्हारी याद आती है !-
तुम्हारा स्पर्श महसूस कर
जाना मैंने,
"प्रेम में हृदय यात्रा करता है
तन के रोएँ-रोएँ से होकर" !!
©अनुश्री 'श्री'✍️-
दृष्टि तुम, विकार मैं
भाव तुम, विचार मैं
गल्प तुम, तो सत्त मैं
कल्प तुम, तो अंत मैं
जो वृष्टि तुम, प्रवाह मैं
हो ज्ञात तुम, अज्ञात मैं
मैं चंचरीक, तुम जवाकुसुम
अहो! पारिजात तुम
अखण्ड जलप्रपात तुम!!!-