Mukesh Kumar Sinha   (मुकेश सिन्हा)
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Joined 21 January 2017


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17 JAN AT 20:05

अजीब होते हैं
ये अलग-अलग से स्माइलीज भी
तभी तो, मेरे लिखे पर जब-जब तुम,
चिपकाती हो गुलाबी दिल !

मेरे हृदय रक्त वाहिनियों के अन्दर
थमे-चिपके हुए सारे के सारे कोलेस्ट्रॉल
तेज सिहरन के साथ बह निकलते हैं

हाँ डॉक्टर ने भी कहा था हंसते हुए -
बेशक हजारों दुख हो इस दुनिया में पर,
फेसबुक/इंस्टा/ट्विटर पर चस्पा किया
दिल भी गहरा गुलाबीपन भरता है ।

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22 MAR 2024 AT 19:27






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19 DEC 2023 AT 20:05

चूल्हे की ताप को कम करता है
जब लाडला पीठ पर चिपक कर
लाड़ से कह उठता है - अम्मा !

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12 DEC 2023 AT 18:52

गर ईश्वर ने पूछा
कि क्या चाहते हो
तो कह दूंगा -
कुछ करो ऐसा भगवन
ताकि दुःख को भी
गरिमा से धारण कर पाऊं !

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13 OCT 2023 AT 10:23

सुनो
तुम्हारी स्थितिज उर्जा
मुझमे गति प्रदान करती है

बस उम्मीद रखूँगा
ये आकर्षण बना रहे
...ठीक न !

ये खिंचाव का बल भी
क्या न करवाए !

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23 AUG 2023 AT 20:42

अंततः
थक कर बेचारा चाँद भी
आया हमारी कश्ती में

कह रहा तुम चलाओ चप्पू
मैं खो जाऊं तुम्हारे बस्ती में ... !

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4 AUG 2023 AT 11:31







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17 JUN 2023 AT 8:40

संज्ञा-सर्वनाम
की विशेषता
बताने वाले शब्द हैं विशेषण
'पिता'
ऐसी ही चाहत भरी नजर से
ताकता है संतान को।
कि संतान से याद किया जाए पिता को

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12 APR 2023 AT 15:54

जाना उस दिन
छुई-मुई के गुलाबी फूल सी हो
चमचम करती तुम
मेरे स्पर्श भर से
सिमट गई थी, उसके पत्तियों सी

सुन रही हो न, मेरी छुई-मुई।

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14 MAR 2023 AT 21:46

इनदिनों सपनों में
गांव के घर वाले दरवाजे
बराबर चर्र से खुलते हैं

और तो और खिड़कियों के पल्ले भी
छमक कर बुलाते हैं

इनदिनों गांव-ओसरा-डगर-पोखर
सब के सब कह रहे
आया करो न

इनदिनों सपनों को जीना प्यारा लगता है
इनदिनों शायद, शहर की खिड़की में
हवाएं गांव से ही आ रही होगी
... है न!

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