कभी अपनों के वास्ते, तुम हार जाना सीख लो
गर चाहत है इज़्ज़त की, सर झुकाना सीख लो
प्यारे मिलता नहीं है मुफ़्त में कुछ भी जहान में,
पाना है अगर कुछ भी, तो कुछ गवाना सीख लो
अंकुश नहीं इस वक़्त पे ये तो आता है जाता है,
मिल के उसी के साथ ही, रस्में निभाना सीख लो
इधर मिलता नहीं है कुछ भी अब आंसू बहाने से
ठोकरों से गिर कर भी, खुद को उठाना सीख लो
ज़िन्दगी की असलियत से आँखें न चुराइए 'निखिल'
इस बेरुख़ी के दौर में, कुछ अपने बनाना सीख लो
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