एक कैंसर पेशेंट की कहानी 'शून्य की ओर' अनुशीर्षक में पढ़ें..👇👇👇
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देश मर रहा है
राजनीति के कैंसर से।
किसी को मरते देखना
मरने से भी बदतर है।-
ऐसे में
कौन कुत्ता उसका घाव चाटता
कौन कुत्ता उसका दर्द बांटता
कौन कुत्ता उसका रोना अलापता
पर वो वापिस मोहल्ले
में आया इस आशा से
कोई उसकी पीड़ा को अंत दे
पर किसी ने मदद नही की
मैंने भी नही
पर भगवान ने की थी
उसे दर्द से छुटकारा देकर
उसने अपनी नश्वर देह का सौदा किया
फिर खुदको भगवान को सौप दिया
और सो गया तमाशा देखता हुआ
सुबह निगम की कचरागाड़ी आयी
कचरे में दबाकर ले गयी
ताकि बास दूर तक ना फैले
ताकि बिरादरी वाले सूंघकर ना आ जाएं
मरने के बाद दावत उड़ाने।
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दो कश लेने को बिताए दो पल, अपनों को दे कर देखो,
दो कश से घटने वाली ज़िंदगी, देखना दोगुनी हो जाएगी।।-
// आख़िरी कश //
अब बस कुछ ही घंटे बचे हैं फ़िर वक़्त हो जाएगा एक नींद का इंतज़ार करने का जिसके पहले और दौरान दर्द कुछ वैसा होता है जिसे बयां करने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं होगा।
(अनुशीर्षक पढ़ें)-
क्या कहा तुमने
प्रेम गीत सुनाऊँ
इस उम्र में ख्वाबों में चला जाऊँ
जो मिल ना सका उसे याद कर जी दुखाऊँ
कुछ ऐसा है भी नही जिससे तुम्हारा जी बहलाऊँ
रोजी रोटी की फिक्र में राह-ए-इश्क चला ही नहीं
यौवन कब पीछे छूटा याद भी नहीं
बस इतना याद है कि
घर के सामने वाले पार्क में उसे देखा करता था
जिस पेड़ की छाँव में अक्सर वह बैठा करती थी
उसके सामने एक पगडंडी हुआ करती थी
अब वह रास्ते में तब्दील हो चुकी है
मॉर्निंग वाक करते हैं लोग उन पर
उन रास्तों के दोनों तरफ जितने भी पेड़ हैं
अमलतास और गुलमोहर के
मैंने लगाए हैं उसकी याद में
उसकी पुण्य तिथि को मिलने चला जाता हूँ
किसी अनजान मरीज से कैंसर अस्पताल में
मुहब्बत के नाम पर मेरी जमा पूँजी बस इतनी ही है
इसलिए सुन लो आज कोई दूसरा गीत मुझसे-