हवा मुझको गले लगाती है कस कर,
बातें करती हैं ये वादियां मुझसे हंस कर।
पहाड़ों से आती सदा मुझसे बोली,
जी ले तू भी ज़रा मेरी पनाहों में बस कर।।— % &-
Bangalorean
Simple writer, complicated women
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हुआ यूँ, जो बिखरे केश उसके, चाँद पर बादल से हो गए,
फिर दिल पत्थर रखने वाले भी इश्क़ में पागल से हो गए।।
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शाम ढले, गंगा के तीर, प्रियतम प्यारे ले चलना,
हाथ थामे मेरा, मुझको अस्सी किनारे ले चलना।।-
वो तीर इश्क़ का, इस पार से उस पार कर गए,
दिल में पतझड़ का मौसम था, वो बाहार कर गए।।-
कई अर्से बाद इस दिल का मेहमान बन के,
इश्क़ आया है फिर होंठों पर मुस्कान बन के।।-
ऋतु वसंत सा होने को लपेटती हूँ कई रंग नकली खुद पर,
और दिखावों इन रंग के भीतर, टूटती हूँ हर रोज़ पतझड़ सी मैं।।-
लफ्ज़ मुश्किल होने लगे जो तारीफ को तेरी,
मैंने आसान तरीका सोचा, तुझे मोहब्बत लिख दिया।।-
भरने से पहले कुरेद जाती है पुराने ज़ख्म मेरे,
बैरन हवा अपने संग महक तेरी ले आती है।।-
कुछ इतना तू मुझसे करीब हो जा,
बस जा यूँ दिल में कि हबीब हो जा।।
लोग कहते हैं क्यों बदकिस्मत मुझे,
इक काम कर तू मेरा नसीब हो जा।।
हर रोज़ लड़ रही दर्द-ए-दिल से मैं,
क्यों ना दर्द का मेरे तू रकीब हो जा।।
उलझे हुए हैं हम तारों में ज़िन्दगी के,
तू सुलझाने की कोई तरक़ीब हो जा।।
कर ले झूठी ही, थोड़ी मोहब्बत हमसे,
इतना करम कर, थोड़ा नजीब हो जा।।-
लिख-लिख कर कलम-स्याही से उसे,
दिल से बहा दूँगी, सोचा!
वो सागर सा बसा था दिल में आखिर,
बूँदों से खाली कैसे होता।।
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