अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।
देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।
रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।
पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।
वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।
हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।
आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम
सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी-
डूब गया हूँ मैं, इसलिए डुबकी है ज़रुरी।
मोक्ष की प्राप्ति या, पाप-पुण्य का बैराग।
अनुशिर्षक:====>-
वो एक पत्थर को पूज कर भी लाखो कमा रहे है,
कुंभ के नाम पर पता नही कौनसा पाप धो रहे है,
एक तरफ बोलते है की भगवान सबका लेखा झोका देख रहे है,
तो फिर ये दोगलापन की डुबकी लगाकर,
कौनसा नई पाप की शुरुवात कर रहे है।-
कुंभ के उस मेले में मैं भी कभी खो जाऊँ,
शायद खोकर ही मैं खुद को...एक दिन खुद को पा जाऊँ।।-
समय का चक्र भी क्या ख़ूब नज़ारें दिखाता है। आध्यात्मिकता में डूबा संत समाज आज महाकुम्भ में राष्ट्र की एकता-अखंडता का प्रतीक तिरंगे को थामकर शाही स्नान कर रहे हैं। लोकमंगल का ऐसा दृश्य अन्यत्र दुर्लभ है।
ऐसा देश है मेरा
जय श्री कृष्ण-
जब-जब सजते मायापुरी हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन,
चहुँओर दिखते केवल साधु-संत महामंडलेश्वर क्या दिवस, क्या रैन।
इन स्थानों में प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल में हुए कुंभ का आयोजन,
अत: किसी एक स्थान पर प्रत्येक द्वादश वर्ष बाद बने समायोजन।
संबंध समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश से जोड़ा जाता है,
देव-दानव संघर्ष में जहाँ-जहाँ गिरा, वहाँ आयोजन किया जाता है।
गंगा, गोदावरी, क्षिप्रा हैं वो बूँद-बूँद छलका था जिन पर अमृत कुंभ,
छः वर्ष के अंतराल में हरिद्वार व प्रयाग में आयोजित होता अर्धकुंभ।
सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में जब होता है सूर्य का प्रवेश,
प्रत्येक द्वादश वर्ष में नासिक में होता तब 'महाकुंभ' का श्री गणेश।
जहाँ आयोजित किया जाता है देश संग दुनिया का सबसे बड़ा मेला,
गर्व है हमें कि विश्व में केवल भारत वर्ष है ऐसा एकमात्र देश अकेला।
यूनेस्को ने भी कुंभ मेले को सांस्कृतिक विरासत में किया है शामिल,
पवित्र नदियों में शाही स्नान कर श्रद्धालु करते हैं अक्षय पुण्य हासिल।-
आस्था और विश्वास ही तो है जो नदी की धारा को
अमृत का कुंभ बना देता है, और जमीन के एक
टुकड़े को प्रयागराज कहला देता है ।।-
ना मेला पहले ही सुखद था,
ना मेला आज ही सुखद है।
पहले मेलों की जरूरत थी लोगों को,
मिलते थे सामान सिर्फ वहीं लोगों को।
आज तो सबको शांति चाहिए,
कल तो जरूरत थी पेट भरने की।-
पहले मेले में बिछड़े भाइयों का मिलना संभव होता था
और अब के मेले में सीधे नो वेटिंग 😅😅😭-
ईश्वर का लाख लाख शुक्र है ...
कि फेसबुक व्हाट्सएप ....
चाइनीज़ नहीं है ......
वर्ना हम सब ऐसे बिछड़ जाते ...
जैसे कुंभ के मेले में निरूपा राय के बच्चे ...😂😂😂..-