किसने कहा कि मैं शर्माती नहीं
माही,...
यूं नज़रों से नज़र मिला कर तो देखो-
फेंक दूं सारी किताबे कमरे से निकाल कर मगर
सिवा इनके तन्हाईयों में साथ मेरा दिया किसने हैं
-©सचिन यादव-
किसने किसका,क्या ले जाना है,
जो यहाँ का है,यहीं रह जाना है,
सब्र कर बंदया,मालिक एक ही है,
तेरा मेरा करके,कुछ नहीं मिल पाना है,
जो होगी उसकी रहमत तुझपर,
तुझको सब मिल जाना है,
जो तेरी किस्मत में,लिखा है उसने,
तूने पक्का पाना है,
दान धर्म कर ले जो करना,
बस यही तेरे साथ में जाना है,
जिसके लिए तू कल था रोया,
उसने कल तुझको दफ़नाना है।
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ना जाने मेरे साथ, किसने किया था साजिश?
जिसके हम शिकार हुए!
हम भी नजरों में थे सब के अच्छे
अब तो हम बेकार हुए!!-
भूली बिसरी गलियों में,
वापस मेरा जाना क्या?
किसने अपना समझा था?
किसने अपना माना था?
किसने आंसू पोछे थे?
कोई चेहरा याद नहीं?
सबने नश्तर मारे थे,
सुनी मेरी फ़रियाद नहीं!
स्वतंत्र हरे हैं घाव सभी,
गैरों को दिखलाना क्या?
अपना किसको कहूं यहां?
मेरा कोई ठिकाना क्या..!
आवारा हूँ यही सही,
खुश हूँ अपने साथ मगर,
ढूंढ़ रहा हूँ मंजिल को,
जंगल पर्वत नगर नगर..!
सिद्धार्थ मिश्र-
मुझे,
इन घने जंगलों में ,
इन सूनी वादियों में ,
क्यू आ गए बुलाने ?
(Full in caption)
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किसने ये जीने की रीत बनाई
किसने लिखी मुकद्दर में रुसवाई
किसने ये सहने की पीड़ बनाई
किसने दर्द संग लिखी बेवफ़ाई
किसने ये शब्दों की लीला रचाई
किसने चुप्पियाँ बनाई दुखदाई
किसने ये भाग्य में लिखी कठिनाई
किसने बिन मांगे लिखी जुदाई
किसने बिन मांगे लिखी जुदाई
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किसने रोका है तुम्हें,
तुम्हारी मंज़िल को पाने से|
कश्ती पार होती उन्हीं की,
जो डरते नहीं हैं दरिया में बह जाने से||-
किसने प्यार को जाना है
किसने इसे पहचाना है।
किसी को तो बस दिल बहलाना है
और किसी को अपना प्यार दिखाना है
तो किसी को सब कुछ लुटाना है
फिर बीतते समय के साथ उसे ही भुल जाना है।
किसने प्यार को जाना है।
किसने इसे पहचाना है।-