हुई मुलाकात बात कह न सका !
उस रिश्ते से साथ बैठ न सका !!
दर्द बांटने थे उसके साथ मुझे !
कहने की हिम्मत समेंट न सका !!
आये आंसू आँखों ने ही पी लिये !
उसे दर्द न हो आंसू बह न सका !!
उसके जाते ही शून्य मे ताकूंगा !
हुई मुलाकात बात कह न सका !!-
कहना तो बहुत कुछ है तुझसे,
पर कह कहा पाता हूँ,
ये भी सच है कि जीना है तेरे बगैर,
मगर एक पल भी रह नही पाता हूँ!!-
मैं गया तो तेरे अंदर क्या बचेगा कह ज़रा,
खोखला सा जिस्म क्या कुछ कह सकेगा कह ज़रा।
देखना आएँगे आशिक़ ज़िक्र इस लब का लिए,
क्या मगर मुझसा इसे कोई छुएगा कह ज़रा।
हिज्र की शब को मैं अपने अश्क हर पल दे रहा,
क्या भला इस रात को तुझसे मिलेगा कह ज़रा।
जिस तरह महताब में भी क़ल्ब मेरा जल रहा,
चाँदनी में उस तरह तू भी जलेगा कह ज़रा।
ख़्वाब की किरची समेटे फिर रहा हूँ मैं मगर,
कैसे नींदों में फ़क़त रस्ता कटेगा कह ज़रा।
कह ज़रा एक वस्ल अपना फिर कहीं होगा कभी,
कहकशाँ में आशियाँ अपना बनेगा कह ज़रा।
ऋषि 'फ़क़त'-
अपने अभिनय से पाई हुई वो मोहब्बत लौटा दें
लोगों की आँखों में आई हुई वो नफ़रत लौटा दें
कह रहें वो कि उन्हें हिन्दुस्तान में डर लगता है
पहले फिर यहाँ कमाई हुई वो शोहरत लौटा दें-
देखो, शब्दों ने बदली है चाल
लाँघ रही रूढ़ियों की ड्योढ़ी, काट रस्मों की जंज़ीर
मानो लग गये हैं पंख, और तैयार हों भरने को उड़ान
देखो, शब्दों ने बदली है चाल
शब्द ही तो हैं
जो रहते सृष्टि के आदी से अंत तक
इन्हें सिर्फ कहा जा सकता है
इन्हें सिर्फ सुना जा सकता है
इन्हें सिर्फ लिखा जा सकता है
इन्हें सिर्फ पढ़ा जा सकता है
इन्हें न शस्त्र काट सकते हैं, न आग में ये जलते हैं
न हवा सुखा सकती है, न जल में ये गलते है
छुपे होते हैं, सोये होते हैं, रहते हैं समाधी में
किसी कवि के हृदय में,
जब होती है जरुरत, तब लेते हैं ये अवतार।-
इतना प्रेम लिखता रहूँगा अपने शब्दों में, के
लोगों को हर तस्वीर में तुम नज़र आओगी!-