हज़ार अच्छा करले तू किसी के लिए,
अंत में तेरी गलतियों के ही कसीदे पढ़े जाने है,
मत बदल तू खुद को किसी के लिए भी,
तुझे बदलता देख वो ही सबसे पहले चले जाने है!-
शोख़ अदाओं का जब जिक्र हुआ करता है,
बाखुदा, हर शख्स तेरे कसीदे पढ़ा करता है,
महफ़िल में हमें जब से अपना कहा है तुमने,
बाग़ में हर फूल हमसे झुक के मिला करता है..-
कसीदों में लपेट सच को
आग से बचाने का हवाला देने वालों
हम तो अंगारों से खेलते हुये बड़े हुये है ।।
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मेरी तारीफों के
कसीदे तो बहुतों ने पढ़े ,
मगर उसने मेरी गलतियों
पर मुझे डांटा है...
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क़सीदे पढ़ते रहे ताउम्र जिनकी तारीफ़ो के
अब तो मरना भी उनके हाथों कुबूल था
कि कब मुड़ गयी जिन्दगी इस तरह
बैठी थी वो वहां मेरा जनाजा उनके करीब था-
ख़ास..
थे .. हो .. रहोगे..
अरे मैं,
कसीदें तुम्हारी शख्सियत के नहीं,
पीठ जरा खुद की थपथपा रही थी ..
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"दो बातें तुम्हारे मन की ना हुईं
तो शिकायत करने चले आए
जब तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं
तो क्यों नजरअंदाज कर देते हो"
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जो साथी अपना होता है
लगन की थाम के लाठी चलता रहता है
भरोसा खुद पर करता है
जोश के पंख लगा उड़ता रहता है
अकेला वो नही होता
जो मुहब्बत खुद से करता है
नफरतो से दूर रहता है
जो स्वयं में मगरूर रहता है
शिकायत दूसरो की
कसीदे स्वयं की गढ़ता है
अकेला वो होता है
जिसे लेने का हुनर मालूम
देने से दूर रहता है..!
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आज लगा रहा हूं तोहमतें तो चुप न कराइए
कल तक हम भी हुस्न के कसीदे लिखा करते थे-
जब तुम प्यार के कसीदे पढा करते थे, मैं बेखबर थी अपने जज्बात से..
आज जब मैं सब कुछ समझ चुकी, तो तुम कहीं पर खो गये-