कलयुगी हमराज़
सामने से जो गुजर गया
वो आज हो तुम
हमारे सांसों को जो गुनगुनाये
वो साज हो तुम
मिलकर भी जो ना मिल सका
एक ऐसा कलयुगी
हमराज़ हो तुम!!!!!!!!!!!
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सफेद दरख्त अब उदास हैं
जिन परिंदों के घर बनाये थे
वो अपना आशियाना ले उड़ चले।
सफेद दरख्त अब तन्हा हैं
करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये
परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये।
सफेद दरख्त अब लाचार हैं
छाव नहीं है उनके तले
अब परिंदों को वो बोझ लगने लगे।
(पूरी कविता किप्सन में पढ़ें)-
पहले लोग चरण “स्पर्श” करते थे आशीर्वाद पाने के लिए
आज के कलयुगी लोगों ने “स्पर्श" को भी छेड़खानी बना डाला।।-
जरा गौर से सुनो कहीं कुछ हलचल है ।
हर घरो से बहता आज रक्त कलकल है ।
ये दरिंदगी की बू हवा में अब यूं फैल रही ,
सांस भी ना ले इंसान ऐसी घुटन हरपल है ।
कभी देश के नाम पर,कभी वेश के नाम पर ।
इंसानों ने इंसानों को खाया धर्म के नाम पर ।
आज कसाई बनना पेशा नहीं आदत है ।
खून को शरबत बना डाला रब के नाम पर ।
तौहफे मेे ना दू अब पोशाक किसी को,
क्योंकि बाहर नंगा नाच चल रहा है ।
ढकने के लिए द्रोपती की साड़ी भी कम पड़ जाए,
ऐसा हवस पल रहा है ।
जरा गौर से सुनो कहीं कुछ हलचल है।
यह एक विनाशकारी हलचल है ।।
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मेरे मन भयो एक चाव लिखूं मैं कलयुगी रमायण।
जिसमें कल्कि का अवतार हो और दुखियों का दुःख दूर हो।
जिसमें दुष्टों का संहार हो और सबका बेड़ा पार हो।
जिसमें जामवंत सा सेनापति, हनुमान सा महायोद्धा हो और राम सा नायक हो।
राम के साथ निभाने वाले लखन जैसा भाई, जनता और पतिव्रता सीता हो।
राज्य का त्याग करने वाला भरत सा भाई हो।
सब चरित्र का रोल अदा करे ऐसा कुछ कलयुग का रमायण हो।
इस धरती पर दैत्यों का नाश करे जो उस कल्कि का अवतार हो अब तब तो राम सा राज्य हो।
जिसमें जाति पाती का ना भेद भाव हो ना आपस में कटुता और द्वेष हो।
सब संकून से जीवन जीता हो ऐसा राम सा राज्य हो।
रजनी अजीत सिंह 11.5.18
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मैंने कलयुगी इश्क पर लिखा
तो तुम बुरा मान गए जनाब
अब बारी सेक्स की हैं
मुझे तुमसे तलाक चाहिए-
आज मैंने छंदों से मटरगश्ती का मन बनाया
एक सूत्र में पिरोकर मुक्ता-रूप देना था उन्हें
मगर मैं भी ठहरा कलयुगी, दमक के दिखावे में
मूल भाव ही धूमिल कर दिया उनका।-
#क़लयुगीमुहब्बत
बेरोज़गारी में जब बैठें तो बैठें बैठें एक काम कर लिया,
जरा सी फ़ुरसत मिली तो मुहब्बत खुलेआम कर लिया-
माँ के दिल में डर सा समाता है ,
जब बदलता वक्त अपना रंग दिखाता है!
वो टूटा हुआ चश्मा और घूटनों का दर्द
अब घर का खर्च बढ़ाता है!
कुछ खास लोगों के घर आने पर, वो माँ को कोई और बताता है!
सूती साड़ी में उसका लिपटा रहना,
अब शान में दाग लगाने को कोसता जाता है!
माँ के साथ बाहर जाने को भी,
ओल्ड फैशन बताता है!
खुद राजभोग से पेट भरता है,
उसे बासी रोटी खिलाता है!
नौ माह कोख में रखा जिसने,
उसे घर का बोझ बताता है!
एक माँ अब कैसे खुश रहे,
जब उसके जिंदा होने पे भी,
वो उसे मरा हुआ बताता है!
भूल गए क्या वो बचपन के दिन तुम्हारे,
जब तुम्हारे एक राजभोग के लिए
वो हजार किमत चूकाता है!
माँ तो है एक अनमोल रतन,
जिनके पास नहीं सिर्फ वो ही समझ पाता है ।
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गंगा सी अविरल धारा की भाँति बहने लगी है वो,,
देख कर कलयुगी औलाद चुप सी रहने लगी है वो,,
पीड़ा सहकर कष्ट उठाकर रँग दुनिया का दिखाया,,
तन ढाँप कर अपना तुझको उजला खूब बनाया,,
गिनती पूरी आयी न खुद को तुझको खूब पढ़ाया,,
बनेगा आला अफ़सर बेटा सबसे कहने लगी है वो,,
देख कर कलयुगी औलाद चुप सी रहने लगी है वो,,
माँ की ममता क्या जाने वक़्त अपना रंग बदलेगा,,
सफलता पाकर मौका आते बेटा भी ढँग बदलेगा
ये कलयुग का दानव है ये दिल की तरंग बदलेगा,,
बेटा आखिर बेटा है उसके दुख सहने लगी है वो,,
देख कर कलयुगी औलाद चुप सी रहने लगी है वो,,
Ig,, burning_tears_797
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