Meenakshi Sharma  
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Joined 24 October 2020


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Joined 24 October 2020
21 MAR AT 14:19

ए काश:
कि इस
संवेदना की
वेदना को
भेदता कोई.....
Meenakshi Sharma ⭐

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21 MAR AT 14:09

लिखती हूँ खुद का.....

खुद ही पढ़ती हूँ मुस्कुराती हूँ

शाम-ए सहर कुछ यूँ.....

दिनों को पन्नो सा सरकाती हूँ

Meenakshi Sharma ⭐

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21 MAR AT 13:41

कैसे कटीं बेचैनियाँ,तन्हाइयाँ, राणाइयाँ लिख दें
संगे वादा करें जन्मों का, नाम हर साँस दिल लिख दें
Meenakshi Sharma ⭐

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29 MAY 2024 AT 10:55

अहा.!.रब की इबादत में सुकूं भरा है
हाँ.!..मानो ना मानों ये सोना खरा है
हर दिल को मिलती पक्की तसल्ली
टपक बूंद अश्क, रहम रब अमृत बना है
ना वादे, ना शिकवे, ना कैसी भी शर्तें
रब को बंदों से अपने ना कोई गिला है
जिसका सच्चा सा मोती हो मन में बसेरा
छत्रछाया में हर पल वो रब की खड़ा है
जो कांटों में फूलों की डलिया बिछाए
सुनो! ये जादूगर बिरलो को ही मिला है
Meenakshi Sharma ✍️

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29 MAY 2024 AT 9:51

इस चाय की मिठास भी कुछ खास है
जिसमें इश्कियां लम्हों के भरे एहसास हैं
Meenakshi Sharma ✍️

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16 APR 2024 AT 22:21

ये स्याही भी कितनी
अजीब है ना
कहीं कितना कुछ लिख जाती है
तो
कहीं कितनी मेहनत से
लिखे हुए को भी दाग दाग
कर जाती है...........
Meenakshi Sharma ✍️

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8 MAR 2024 AT 23:21

मैं प्यास बन जाऊं
रूह तेरी हो मैं बस
तेरी सांस बन जाऊं
राहगीर तू डगर का
मैं तेरी सरेराह बन जाऊं
Meenakshi Sharma 🌟

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30 MAY 2023 AT 7:40

तुम इजाजत दो तो तुम्हारे लबों की
भीनी सी तरन्नुम बन जाऊं, ता -उम्र
ठहरूँ वहाँ और शब्द गुनगुनाऊँ.......
🌟Meenakshi Sharma 🌟

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23 MAY 2023 AT 14:49

तेरी संगत के संग से देख मेरी रूह की रंगत
किस कदर महक रही है मानो हल्दी, मेंहदी,
बिंदियां, बिछिया और सुहाग का साजो श्रृंगार
खुद ब खुद आकर मुझे इत्र की माफिक
महका रहा हो........😊 और
इस नूर रहित बदन की मिट्टी में किसी ने
मानो अनगिनत रंगो के ब्रश से पोता
फेर दिया हो...... जो सतरंगी रंगो से
चमक रहा हैं........
और मन का मयूरा मानों चहक
रहा है एक दैवीय मिलन की उन्मुक्त
अनुकम्पा लिए, जिसकी न जानें
कितने जन्मों से आस की ज्योति
पल पल मेरे ह्रदय को धड़का
रही थी स्वर ताल लिए.........
🌟Meenakshi Sharma 🌟

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14 MAY 2023 AT 17:08

किसी की परवरिश करनें में
समय लगता है वह चाहे मकान हो,
आचार विचार हो चरित्र हो या फिर
संतान क्योंकि ध्यान रहे पल में केवल
प्रलय/ अन्त ही हो सकता है आरम्भ नहीं,,,,
एक सुयोग्य विकाश .........!.
हमेशा ही .........समय मांगता है.......
मां केवल एक दिन ही परवरिश नहीं करती
वह हर लम्हा, हर दिन, हर महीने, हर साल
अपनी संतान का रखती है दिल से खयाल
दुनिया में लाने से भी पहले वह तुम्हे जानती है
पल पल अपनी रक्त बूंद से तुम्हे
सहेजती संवारती है........❣️
ये मां है हर लम्हा तुम्हें थामती है 💕😘😍

🌟Meenakshi Sharma 🌟

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