गैरों की नजरों से खुद बचाती रही हिना लगे हाथों को,
पहले मुझे दिखाना चाही जो नाम लिखा था मेहंदी का!
हया से सुर्ख रुख़सार थे, जो हिना के से खुशरंग थे,
खोल हथेली जब मुझे दिखाया, रंग गाढ़ा मेहंदी का!
रंग फिज़ा का बदला बदला, सूरज क्यों छिपने लगा,
शाम का सूरज शर्माया जब हाथ देखा तेरी मेहदी का!
सुर्ख लब शोले बने जब शब-ए-वस्ल का तकाजा से,
लब लगे दहकने जब लबों पर हाथ था मेहंदी का!
चाल कुछ बदली बदली सी, कदम बहकते जाते क्यों,
पायल भी बहक गई जब साथ मिला उसे मेहंदी का!
कुछ ख़्वाहिश कुछ जज्बात कुछ अनकही कहानी है,
वफ़ा उसने यूँ जाहिर की हाथ रचा कर मेंहदी का!
एक निशानी का मुंतज़िर मैं, जिसका 'राज' हकदार है,
जब देगी कागज़ पे निशानी छाप हाथ का मेहंदी का!
_राज सोनी-
अबकी बार करवा चौथ होगा तेरे नाम,
तन मन धन सबकुछ मेरा है तेरे नाम।
तेरे दुख मेरे, मेरी सारी खुशियाँ है तेरी,
अब हर दिन होगा करवा चौथ तेरे नाम।
सारा प्यार सूद सहित तुम्हे है समर्पित
अबकी बार ये चाँद भी होगा तेरे नाम।
अन्न जल का व्रत कोई बड़ी बात नहीं,
हैं संकल्प व्रत का ये जिंदगी तेरे नाम।
अबकी बार मैं देखूंगा तुमको छलनी से,
इस बार मैं रखूंगा करवा चौथ तेरे नाम।
हर व्रत पर लगाती हो मेहंदी मेरे लिए,
मैं लगाऊँगा अँगूठे पर मेहंदी तेरे नाम।
करवा चाँद की जगह आ चाँद बन कर,
दूंगा मैं भी अर्द्ध मेरे चाँद को, तेरे नाम।
हर तिथि है मेरे लिए करवा चौथ जैसी,
तुम हो सर्वस्व मेरी, मेरा प्यार तेरे नाम।
प्रेयसी से बढ़कर तुम हो मेरी अर्द्धांगिनी,
चाँद गवाह प्यार का, 'राज' भी तेरे नाम। _राज सोनी-
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
( धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री- इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है )-
होएहु संतत पियहि पिआरी।
चिरु अहिवात असीस हमारी॥
( तुम सदा अपने पति की प्यारी होओ,
तुम्हारा सुहाग अचल हो;
हमारी यही आशीष है )-
प्यार के इस त्योहार को ,
कुछ ऐसे हमने तोल लिया।
उसने चांद का इंतज़ार किया ,
मैंने सूरज देख के व्रत खोल लिया।
😜-
करवा चौथ के पावन पर्व पर,
तुझे ये कविता समर्पित करता हूँ।
तुम्हारे प्रेम और त्याग के लिए,
मैं तो हमेशा आभारी रहता हूँ ❤️
तुमने आज फिर व्रत रखा है,
मेरी लंबी उम्र की कामना के लिए।
तुम्हारे इस प्रेम और विश्वास ने,
मेरे जीवन को सार्थक है किया ❤️
कई बार यमराज से लड़ कर
वापस मुझ को ले कर आई हो।
प्रेम की शक्ति ,अटल विश्वास का
देखो प्रदर्शन हमेशा करती आई हो ❤️
आज चांद के दर्शन के साथ,
मेरा व्रत भी पूरा हो जाएगा।
तुम्हारे प्रेम और विश्वास के साथ,
जीवन और भी सुखमय हो जाएगा ❤️-
इस हयात में जी भी नही रहे मर भी नही रहे
तुम्हें सोचते हैं, और हाँ याद कर भी नही रहे
कितने अजीब हैं न ये गमों के बेदर्द मौसम
यहाँ रूके हुए हैं, कम्बख्त गुजर भी नही रहे
वो हम से आँखों को कुछ यूँ मिलाने लगे हैं
लोग देख रहें हैं वो बिल्कुल डर भी नही रहे
आज करवा-चौथ का दिन है मिरे तो है नहीं
वो जिस के हैं उसके लिए सँवर भी नही रहे-
मुझे पता है!
तुमने आज सब से छुप कर
मेरे लिये यह व्रत रखा होगा
मुझ से भी छुप कर, है ना?
तो चलो,
इस त्याग कर के भी छुपाने का
तुम्हारे इस अनकहे से प्यार का
सम्मान कुछ इस कदर रखते हैं
तुम तो उस चाँद को देखोगी ही
मैं भी उसे एकटक देखता रहूँगा
प्यार की कहानियों में सुना भी है
चाँद में महबूब भी नज़र आता है
हमारी पिछली मुलाकात पर मैंने
तुम्हारे जिस हाथ को, 'छुआ' था
'उसी हाथ से' तुम कुछ खा लेना
मैंने जिससे छुआ था मैं खा लूँगा
- साकेत गर्ग-
पूर्णिमा, करवा चौथ तो कभी ईदउलफ़ीतर
किस धर्म का है बोलो चाँद इधर.?
हिन्दू, सिक्ख या मुसलमान
बोलो चाँद की क्या पहचान.?
चाँद मिया या चंदा मामा
क्या पुकारे बोलो ये जमाना.?
चांद :-
क्यों फसाते हो धर्मों में भईया
ना हिंदू ना सिक्ख ना मै मुसलमान हूँ
धर्म की चादर तो ओढ़ी तुमने
मै तो बस एकता की पहचान हूँ
-
सामने नहीं है अभी तुम्हारी सूरत
चांद मेरा मुझे यूंही दिख जाता तो
चलनी में देखने की क्या जरूरत।-