Anvit Kumar   (अन्वित कुमार)
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Joined 7 June 2019


Joined 7 June 2019
27 APR AT 8:43

आसमा हो या
ज़मीं का फर्श
पंछी भी समझते हैं
प्रेम का स्पर्श।

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25 APR AT 9:53

सहस्त्रों दिल
रोज़ जुड़ते हैं,
जुड़ते हैं ऐसे
कि रोज टूटते हैं।

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23 APR AT 10:57

सद्कर्म ही तो कार्य है,
बाकी तो सब कुकर्म है
मानवता एक धर्म ही,
बाकि तो सब अधर्म है।

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21 APR AT 12:04

शायद ना दे साथ
तक़दीर मेरी,
जेब में रखता हूं
तस्वीर तेरी।

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21 APR AT 11:52

कौन लगाए अंदाजा,
हुस्न के पहरे का,
रखता हूं मैं जेब में
तस्वीर तेरे चेहरे की।

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15 APR AT 14:10

सबको सब कुछ मिल जाए
ऐसा कैसे हो सकता है?
सूखा हुआ गुलाब खिल जाए
ऐसा कैसे हो सकता है।

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6 APR AT 14:10

बेजुबां की चीखें
क्या सुनेंगे बहरे लोग ?
रह जाएंगे-बस जाएंगे
बन जाएंगे शहर-ए-लोग।

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3 APR AT 20:20

जंगल की आग से
किसे क्या मतलब है?
लोग तो जानते हैं
सिर्फ चेहरे से ही
किसी की राख से
किसे क्या मतलब है।

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3 APR AT 15:09

वन में क्या कमी थी?
ये चिड़ियाघर
क्यों बनाए गए?
गांव में क्या कमी थी,
ये नगर क्यों बसाए गए?

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3 APR AT 13:52

एक कोठरी में
कैद रह गए वो
जो मन की
भावुकता से
निकल नहीं पाए।

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