मुझे नाज़ है
अपनो पर
मैं इन्हीं पे
फूल जाता हूं
मगर कौन हूं
मैं यही भूल
जाता हूं।-
Anvit Kumar
(अन्वित कुमार)
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Joined 7 June 2019
25 JUL AT 17:26
25 JUL AT 17:20
बढ़ती है-चढ़ती है
गिरती लताएं
अपने ही रंगों में
रंगती लताएं
इठलाती-शर्माती
रहती हैं फ़िर भी,
श्रृंगार से दिखती
रहती छटाएं
हरियाली इनकी
वनों में न कम हैं
घेरे हैं जैसे ये
काली घटाएं
ऋतुराज करते है
इनको सुशोभित
पुष्पों में हैं इनकी
अपनी अदाएं।-
16 JUL AT 18:32
काश उनको भी
हमसे मोहब्बत
पुरजोर होती ;
मैं तो उसे कब
का भूल जाता
अगर मेरी याददाश्त
कमज़ोर होती।-
17 MAY AT 11:30
पिंजरे क्यों खरीदें हम
बगीचे में पंछी नहीं आते क्या ?
पंछी पिंजरे में क़ैद है,
बाहर इंसानियत मरी पड़ी है।
हां लेकिन हम खरीद लेंगे,
पंछियों से भरा पिंजरा
और मुक्त कर देंगे
उसे खुले आसमान में
चहकने को उसे,
सारी दुनियां पड़ी है।-
14 MAY AT 12:39
दुश्मन जो ढूंढा
तो चमन नहीं मिला,
रिश्तेदारों के जैसा कोई
दुश्मन नहीं मिला।-