मज़हबी लोग हाथ में ख़ंजर लिए फिरते हैं
मज़हब को जलाने का मंज़र लिए फिरते हैं
दूसरों को ज़ुल्म देकर गुनाह में डूब गये सारे
आँखों में फ़िर जीत का समंदर लिए फिरते हैं
इक दूसरे में धर्म की आग को भड़काया सबने
ख़ुद के अंदर फ़िर भी ये सिकंदर लिए फिरते हैं
कोई खुश़ है तो उसको देखकर दुख होता है इन्हें
बेवजह ये सारे अब ख़ौफ का बवंडर लिए फिरते हैं
सूखे पत्ते तो सारे के सारे झड़ ही जायेंगे इक दिन
फ़िर भी लोग दिलों में अना का ज़हर लिए फिरते हैं
अब तो दिल में मेरे भी आग लगा ही दी "आरिफ़"
ये सब भी इक क़ातिल अपने अंदर लिए फिरते हैं
कौन से पन्ने "कोरे काग़ज़" हैं ये बतला दो मुझको
अब भी कुछ हैं, जो कलम में हुनर लिए फिरते हैं-
सूखे पत्ते खुद झड़ जाते हैं...
नसीब में जो लिखा हैं,
एक दिन वो खुद मिल जाते...
मत भागों दुनिया के भीड़ में....
अकेला चल कर भी इंसान,
एक दिन मंज़िल तक पहुंच जाते हैं......
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गिना के हज़ार कमियाँ मुझमें,वो बोला मुझसे,,!
मुझसे अब वफ़ा की,उम्मीद न रखना,,,,,,!-
Sukhe patte khud jhad jaate hai...
Tute dil bhi khud sambhal jaate hai...
Is ishq me bhi kya ulajhna-uljhana hai...
Ye to berukhi par bhi sath chodh jaate hai...
Aawargi kar ke hame chaukanna kar jaate hai...
Ishq to bandgi hai do dilo ki...
Magar ise bhi sab nakaar jaate hai..
Waqt aane par darkhat bhi to simat jaate hai..
Apne beelo ko bhi thukra jaate hai...
Ishq to ibadat hai khuda ki...
Magar apne hi to man ka mail badhate hai...
Ishq to Jannat hai duaao ki magar...
Chalte-chalte raste mud jate hai...
Sukhe patte khud jhad jaate hai...
Zindgi bhar saath rahne wale juda hojate hai...
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कमजोर हो वो अपनी जड़ से उखड़ जाते हैं
रिश्तो का भी यही हाल है,
बिन जुड़ाव शिकस्ता हो जाती इनकी चाल है...!!
-©Saurabh Yadav...✍️
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इसीलिए लोग पीछे पड़ जाते है
समझ नही आता है कि क्या करूँ
विरोध करूँ जमाने का या इससे डरूँ
प्यास नही है फिर भी जमाना खून पीता है
फ़टी नही है इज्जत फिर भी सीता है
अब जमाने का दौर ही कुछ ऐसा है
कोई नही अपना सबसे बड़ा पैसा है
कोई मतलब नही फिर भी लड़ जाते है
इसीलिए सुखे पते ख़ुद ही झड़ जाते है-
सूखे पत्तों से यारियाँ कौन रखता है
बेटे चाहिए, छोरियाँ कौन रखता है
फुर्सत कहाँ है अपने आप के लिए
बेवजह,रिश्तेदारियाँ कौन रखता है
और भी कई तकलीफें हैं लोगों को
इश्क़ की बीमारियाँ कौन रखता है
दम घुटता है औपचारिकताओं से
नये दौर मे, पर्देदारियाँ कौन रखता है
शौक़ीनी तो गुजरे वक्त की बात हुई
रूमालों मे काश्तकारियाँ कौन रखता है
निमंत्रण-पत्र बस भव्य होना चाहिए यारों
मेहमाननवाजी की तैयारियाँ कौन रखता है
किस पे करें ऐतबार हम, सब रंगे हुए हैं
इस जमाने मे, वफादारियाँ कौन रखता है।
सूखे पत्ते सी हे जिन्दगी
एक न एक दीन जल जानी हे।।-
जैसे
गर हवा हो तेज़ तो उड़ जाते हैं
मौसम ए ख़िज़ाँ हैं यहां वही, बस
ख़िलाफ़ हवा से हम लड़ जाते हैं
ये उम्र खींचे है पुरजोर ज़िस्म मेरा
हम ही हैं के जवानी पे अड़ जाते हैं-
कमियाँ देखकर मैं तुम्हारी, हाँथ तुम्हारा जो मैं थाम लूं |
तुम हाँथ छुड़ा ना लेना मुझसे, तुमसे तुम्हारी कमियाँ जो मैं निकाल दूं ||-