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वेतन पुनरीक्षण
(अनुशीर्षक में पढ़ें)-
''लिखने की जवाबदेही और किसी के प्रति चाहे न हो, अपने प्रति तो है । हम अपने होने की सार्थकता कहाँ ढूँढें ?"
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ख़र्च एक जमा पूंजी है, जो कर्ज में डूबो देता है
जितना भी कमा लोगे तुम, मन में शंका रहता है
नहीं होता जरूरतें पूरा, तो सवाल उभर जाता है
छोटी- छोटी ख्वाहिशें भी दाव में निखर जाता है
संतोषजनक नहीं मिलता है, जितना भी कमाइए
फरमाइश कहां पूरी होती, कहते सिर्फ फरमाइए
उलझनें लगी है कतार में, दिक्कतें है हज़ार यहां
मुश्किलें की घड़ी में, नहीं बचता है व्यापार यहां
धो बैठते हाथ से अपने, जो इकट्ठा पूंजी रखते है
जो बच्चों के जीवन में, पढ़ाई पर खर्च करते हैं
ख़र्च एक जमा पूंजी है, जो कर्ज में डूबो देता है
जितना भी कमा लोगे तुम, मन में शंका रहता है-
कम लगता है जनाब,
ज्यादा की उम्मीद में
इंसान को बचाया हुए भी
कम लगता है।।-
ईमानदारी से कमाइए,
सिर्फ पैसे ही नहीं,
दुआएं भी कमाइए,
प्रेम भी कमाइए।-
पैसा उतना ही कम पड़ जाता है ।
और कमाई हुई दुआओ का ।
फल तुम्हें जिदंगी भर साथ निभाता है ।
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वो कम ही लगता है
जितना भी मन का खा लीजिये
वो कम ही लगता है
जितना भी घूम लीजिये
वो कम ही लगता है
इज़्ज़त ऐसा गहना जितना भी पहन लीजिये
वो ज़्यादा ही लगने लगता है
प्यार दिया गया सम्मान बहुत ही लगता है-