अगर तुम चाँद होते तो मैं रोशन रात बन जाती
अगर होते कमल तो बन सबा ख़ुशबू को बिखराती
जो होते ख़्वाब तो पलकों को मैं खुलने ही ना देती
मगर तुम वो पहेली हो जिसे मैं बूझ ना पाती
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जब समझ लिया मैंने,
तालाब कमल का नहीं हो सकता...
कमल तालाब का हो सकता हैं...
बस, जिंदगी महक रही हैं तबसे!-
फूल लाया हूँ कमल के।
क्या करूँ' इनका,
पसारें आप आँचल,
छोड़ दूँ;
हो जाए जी हल्का!-
काँटों को भी कमल लिखने लगा हूँ मैं
लगता है अब ग़ज़ल लिखने लगा हूँ मैं-
दवा तो हर कोई बेचता है बीमारी की
कोई था जो गया मर्ज़ बेचकर
सुकून कहाँ बिकता है जरा बता देना
पैसा इकट्ठा किया है मैनें दर्द बेचकर
जब बाप था तो हम शहंशाह थे
अब पेट भी भरते हैं तो ग़ज़ल बेचकर
आप में ही है कुछ दीवाने जिन्हें अच्छा लगता हूँ
जिंदगी अच्छी कट रही है शब्दों की फ़सल बेचकर
गुलाब दिये फिर भी दिल नहीं लगाया किसी ने
दिल लगवा जरूर दिए लोगों को कमल बेचकर
ये आज के कबूतर उसे चिट्ठी तक नहीं पहुँचा पाते
अच्छा नहीं किया मैंने पुरानी नस्ल बेचकर-
'नफरत' बेहिसाब मत करो, कहीं दिल मिल न जाये।
इतना कीचड़ न फैलाओ, कहीं कमल खिल न जाये।-