जनाब! कैसे कटी रात ज़रा हम से पूछिये
तुम जो सोए फिर जागे तो सवेरा हो गया-
किसी एक की होती है,
कोई दूसरा आकर काट देता है,
किसी तीसरा उसको लपक लेता है,
प्यार महज़ एक कटी पतंग ही तो है।
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सटी सटी सी रहती थी अब
कटी कटी सी रहती हो
जाने क्या तुम्हें बाँट रहा है
बँटी बँटी सी रहती हो-
कटी पतंग सी मैं
आसमान में गोते खाती चली ।
कोई अनजान के हाथों में
थमती संभलती चली ।
डोर से क्या कटी मैं
तूफानी हवाओं से गुज़रती चली ।
रंग अनेक ज़िम्मेदारियों के
नाजुक मन पे चढ़ाती चली ।
जीवन की इन पथरीली राहों में
रंग जीवन के बदलती चली ।
मैं औरत हूँ शायद इसीलिए
ग़म भूला के ख्वाहिशें दबाती रही ।-
अचानक आज मैं ख्वाबों के घरोंदे में झांकने लगा,
जो खो गयी थी उन यादों की गलियों में भागने लगा,
वहाँ पर एक थैले में मुझको मेरी लिखी डायरी मिली,
कटी-फ़टी हुई कॉपी में मुझको कटी-फ़टी शायरी मिली,
मैंने खोलना चाहा उन पन्नों को आहिस्ता-आहिस्ता,
दिल रो पड़ा अचानक मेरा जाने क्यों हँसता-हँसता,
मैं धीरे-धीरे एक-एक करके पन्नों को पलटता गया,
यादों में खोकर उन्हीं पन्नों में ही मैं तो सिमटता गया,
सालों बाद आ गयी मुझे याद वो भूली-बिसरी कहानी,
एक ही पल में बर्बाद कैसे हुई थी सचिन तेरी जवानी
29-07-2019-
फीकी उदास सी पड़ी थी वो रंगो भरी पतंग थी,
एक डोर से किसी चरखी में उलझी पड़ी थी,,
भूल चुकी थी हवा में उड़ना, लहराना, मचलना,
किसी ने बरसों बाद हाथ बढ़ाया उस पर पड़ी धूल
को उड़ाया,सोचा की पतंग को हवा से रूबरू करवाऊं,
कितनी रंगीन सी है पतंग आसमां तक ले जाऊं,,
गगन छूने वो उड़ चली, हर पेंच को वो काट चली,
अब न चाहती थी वो उतरना, कि उसी वक्त था....
उसे कट कर गिरना..... अब वो न तो हाथ में थी
ना ही अब चरखी भी उसके साथ में थी...
हॉ लेकिन फिर से...
फीकी उदास सी पड़ी थी वो रंगो भरी कटी-फटी पतंग।।।-
रेशम के धागे....
जो बुने थे कभी सपनों के जालों में,
कटी पतंग...
की डोर से लगते है यर्थात के उजालों में।-
कटी पतंग जैसी जिंदगी
ना जाने कहां ठहरेगी
ठहरी भी तो क्या
पता नहीं फिर
किसके हाथों की कठपुतली बनकर लहरेगी
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पल मे जीती
पल मे मरती
आधी अधूरी मै क्यूँ रहती
सांसे मेरी
क्यूँ नही थकती
नाम तेरा हर पल
क्यूँ जपती
तुझसे दूर अगर मै जाऊँ
खुद को खाली सी
क्यूँ पाऊँ
साथ तेरा मै पा नही सकती
इस दिल को
कैसे समझाऊँ
तेरे बिन तो जी न पाऊँ
बोल न कैसे
जहाँ बसाऊँ
कटी पतंग सी गिरती जाती
तेरे बिन मै
उड़ नही पाती
चाहत मेरी क्यूँ बिखरी हैं
दुनिया मेरी
क्यूँ उजड़ी हैं
सांसे उखड़ी-उखड़ी क्यूँ है...
धड़कन थमी-थमी सी क्यूँ है..
तू मेरा है फिर भी
तेरी कमी सी
क्यूँ है......???-