चूल्हे में पड़ी ठंडी राख़
अवशेष होंगी
आशाओं के अवसान पर
जलती हुई औरतों की
..
सदियों बाद जब
स्त्री को जानना होगा
ढूंढने होंगे नई पीढ़ी को
चूल्हें और उनकी राख़-
मुझे ये गरजते बादल आदमी लगते हैं,
और बरसती बूंदें, औरत;
एक आदमी जब ऐसे ही चीखता- चिल्लाता है,
तब इन बूंदों की तरह औरत भी बस बहने लगती है!!-
बहुत से किरदार निभाने की सोचता हूँ
किसी औरत को देखकर हार मान लेता हूँ।-
"किसी कहर से कम नहीं थी, उसकी आवाज़ उस रात,
राख के तरह फूँक डाले, उन ज़ालिमों ने उसकी ईज्जत "
-
मेरे अंदर का
(समाजरूपी)पुरूष
जिंदा है अभी भी शायद,
इसलिए मुझे आज भी...
मेरी खुद की
शख्सियत को(औरत को)
दबाकर रखने का हुनर आता है।।
-
स्वयं तक सीमित रहने का सुख था
कि प्रेमी के झूठ ही झूठ लगते थे,
देखी जब देश दुनिया की हालत
तुम्हें माफ करने का जी करने लगा,
छिप-छिप के जिसने आँसू बहाये
वो बला भी आज चीख पड़ती है,
उसको दर्द कुछ जल्दी होता है
दो बच्चों से एक सा प्यार जो करती है,
देश में तो दंगे होते है
औरत घर में ही खुश रहती है ।-
हर महीने खून देखने वाली खून से क्या डरानी !
जालिमों औरत तो होती है सिर्फ मोहब्बत की दीवानी !-
इजाज़त ना थी जिसे पराये नर से दो बात की
आज दहेज में उसे बिस्तर मिला है।-