अतीत एक ऐसी दुर्घटना है
जो अब भी हमारे साथ घट रही है
और हम इसके साथ-
जो मुझे,मुझसे मिलवा दे,
कही खो जाऊं,तो मुझे अपने गले लगा ले,
लड़ जाऊंगा उसके लिए मैं दुनिया से,
बस अपनी जिंदगी बना ले,
मुझे एक ऐसी मोहब्बत चाहिए।।
जब मेरी धड़कन बोले,
तो उसे सुनाई दे,
सो जाऊंगा उसकी गोद में मैं,
बस कोई प्यारी गीत सुना दे,
मुझे एक ऐसी मोहब्बत चाहिए।।
जब रूठूँ तो मुझे मना ले,
जब गाऊं तो मेरे साँथ गुनगुना ले,
मेरी धड़कन को अपनी आवाज़ बना ले,
मुझे एक ऐसी मोहब्बत चाहिए।।
कही भटक जाऊं,तो अपनी परछाईं बना ले
अपनी हांथो की मुझे,लक़ीर बना ले,
अपने होठों की मुश्कान बना ले,
मुझे एक ऐसी मोहब्बत चाहिए।।
जो मुझे अपनी सरताज बना ले,
हमारी मोहब्बत को नया इतिहास बना ले,
मेरे मुस्कान को अपनी मुस्कान बना ले,
मुझे एक ऐसी मोहब्बत चाहिए।।
-Amit kumar
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मैंने सोचा.....
गमो का क्यों ना आज अप्रैल फूल बनाया जाये,
दर्द कितना भी हो...आज जम कर मुस्कराया जायें!!-
दिल की किताब में गुलाब उनका था ,
रात की नींद में ख्वाब उनका था ,
कितना प्यार करते हो जब हमने पूछा ,
मर जायंगे तुम्हारे बिना ये जबाब उनका था ।-
मैं एक लाईन लिखता हूँ तो वो चार लाईन लिखते है
मेरे जिन्दगी का किस्सा....मेरे से ज्यादा मेरे मोहल्ले वाले कहते है..!!-
यार
मैं थक चुका हूँ,
बंद करो अब
ये राम रहीम और हनिप्रीत का रोना,
दफा हो जाओ मेरे tv से-
तमाम रातो को जागना
और उजालो में सोना पड़े, 2
कुछ पल का बहुत खिलखिलाना
और उम्र भर रोना पड़े,
मैं बहुत दूर
बहुत दूर रहूंगा ऐसे हादसो से,
क्या पाना ऐसी मंजिलों को
जिनकी वजह से हमसफर को खोना पड़े!
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ज़रा ज़रा सा ही आए हैं हम
तुम्हारी सोहबत में
जो कुछ कमाया था वालिद ने
नीलाम कर दिया
अभिव्यक्ति और सहिष्णुता तो
तुम्हारे जुमले थे
इमरजेंसी का जलवा हमने तो
सरेआम कर दिया
न कोई अवार्ड लौटा रहा न
स्क्रीन ही काली है
पत्रकारिता को हमने गुलाम
कर दिया है
सत्ता का नशा देखो, कैसा चढ़ा
है हमारे ऊपर
हर उसूल वालिद का, कुर्सी पर
कुर्बान कर दिया।-
ऐसी ही हूँ मै।
कहने को होता है बहुत कुछ ,
मगर हर जगह कहती नही।😊
हर किसी से मूंह लगालें ,
इतनी सस्ती मेरी फितरत नही।
क्यों परवाह हों उन लोगों की,
जो काम करें चूगलखोंरो की।😁😁
क्या है उनके ताने-बाने ,
जो इन्सानियत ही ना जाने।
कहते है आज जो पीठ पीछे ,😳😳
कभी बोलेंगे पीछे - पीछे।😌😌
खामोश सभी से मूंह ना लगा,😷😷
क्योंकि मैं ऐसी ही हूं।
मन-
जब भी सिंहासन सौंपने की बारी आती है
हर राजा में धृतराष्ट्र की ही आत्मा समाती है
प्रजा किससे खुश रहेगी, यह कौन देखता है?
योग्यता को नहीं, राजा संतान को पूजता है!
कहने को लोकतंत्र है,अब राजा नहीं नेता हैं
स्थिति नहीं बदली है ,गद्दी बेटे को ही देता है
जनता भी कहां बदली,बस विरासत टटोलती है
कितनी भी अयोग्यता हो,उपनाम पर डोलती है
फिर हंगामा क्यों बरपा है, किस बात पर रुष्ट हैं
जनता बिल माफ़ी से, नेता कमीशन से संतुष्ट हैं
लोकतंत्र की सुन्दरता है, संख्या बल का राज है
दस साल का आरक्षण, तीन पीढ़ी तक साथ है!
हर नेता कसमें खाता है,चाहे मरते मैं मर जाऊंगा
वोट बैंक की खातिर मैं , हर अनर्थ कर जाऊंगा।-