सब लिखते रहे पोथियाँ प्रेम की
और हर शाम नए क़िरदारों से संवार ली,
उसने मन के काग़ज़ पर लिखे ढाई अक्षर
और जागी पलकों में उम्र गुज़ार दी!-
किन्तु पहुंचना उस सीमा तक जिसके आगे राह न... read more
सरकती रेत की तरह फिसल रहा है वक्त
इस वक्त की तरह हम भी बीत जाएँगे |
इतना भी न उलझायें रिश्ते की डोर को,
ये कच्चे धागे हैं , देखो टूट जाएँगे||-
रात गहरी है तो गहरी ही सही, तुम न डरो।
सुबह होने को है कुछ देर में, ऐतबार करो ।।-
बतकहियों सी सखियों के सहारे रहिए ,
ज़िंदगी का कुछ बोझ उतारे रहिए ।
हंस के काटिये या रोते बिताइए उम्र ,
जाना तय है जब, रास्ते तो सँवारे रहिए ।।-
कितना सफ़र तय कर चुके कितना बाक़ी रहा,
इस गुणा भाग में व्यर्थ वक़्त क्यों है गँवाना …
जो बीता हुआ है तुम पर,वो तो बीत ही चुका,
बाक़ी जो बचा है, उसे जी भर जी कर बिताना।।-
सुनो मित्र..
तुम आज नहीं खिल पाए?
तो क्या हुआ !
अभी तुम्हारा वक़्त नहीं आया है,
जब आएगा ;
मौसम तुम्हारे भी अनुकूल होगा ,
तुम इंतज़ार करना…-
जो मिला सके सुर ताल
हर पल ख़ूबसूरत हो और
हर नजारा बा -कमाल!-
धृतराष्ट्रों की जब भीड़ लगी हो तो सबकी ज़िम्मेदारी है ,
निजी हित से ऊपर उठने की तुम्हारी कितनी तैयारी है?
अधिकारों की मृग मरीचिका क्या कर्तव्यों पर भारी है?
कृष्ण तुम्हारे साथ खड़े हैं पर युद्ध भूमि हे पार्थ तुम्हारी है!-