एक डार्क कमरा ...
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डाकू को डाकू कहने की हिम्मत रखने वाला हूं -Swee... read more
जीवन का मूल्य शुन्य हो चुका है
मर्यादायें दुर्लभ हो रही है
सभ्यताएं विलुप्त हो चुकी है
मनुष्य जीवन को शीघ्र ही
पूर्णतः संकटग्रस्त श्रेणी
में दर्ज कर बिना विलंब किए
सुरक्षा उद्देश से
मानव जीवन संरक्षण कानून बना
लागू कर देना चाहिए-
दौर आया जबसे , माध्यम अंग्रेज़ी का,
विचारों और भावों से खो रही है हिन्दी।
उठा कर देखो भारतेन्दु प्रेमचंद सुभद्रा की रचनाएं,
उनमें सिमटी कहीं रो रही है हिन्दी।
राष्ट्रभाषा की योग्यता रखने वाली है जो,
राजभाषा तक ही सीमित होकर रह गई है हिन्दी।
नवजात ने जबसे मां को mom कहा,
उस मां की आंखों से निकले आंसुओं में बह गई है हिन्दी।
हिन्दी से ही सब भाषाओं की बोली का आधार है,
उनका बस आधार बनके रह गई है हिन्दी।
ग़ौर से देखो तो नज़र आएगा ,
बस एक दिन का त्यौहार बनके रह गई है हिन्दी।
कि दौर आया जबसे माध्यम अंग्रेज़ी का ,
विचारों और भावों से खो रही है हिन्दी।
उठा कर देखो कबीर रहीम रसखान की कविताएं ,
उनमें सिमटी कहीं रो रही है हिन्दी।।
-Atul k Patel✍️-
सामाजिक बंधन और
बेड़ियों में मुझे कभी मत बाँधना...
कामयाब हुआ तो खानदान की
हालात बदलने का ठान रखा है
नाकाम रहा तो बिना कफन के किसी
विद्युत शव दाह पर लावारिश छोड़ आना
-Adv P.V.Patel "Nir"✍️-
नाराजगी और उदासी जायज है आपकी
मैं इसके लिए बस आपसे क्षमा मांग सकता हूं
आपको हक है अपनी इच्छाओं को जीने का
आपका अधिकार है अपने साथी का साथ पाने का
तुम चाहते हो हमसे वक्त,प्यार और बहुत कुछ
लेकिन शायद तुम अनजान हो मेरे अब पेशे से
मै अब स्वयं का अस्तित्व तलाश रहा हूं
एक पुराने खो गयी देश की सभ्यता को खोज रहा हूं
किताब,इतिहास,सत्ता ही नहीं बदला है इस देश में
बस मै अकेले ही खोयी भारतीय संपदा ढूढ़ रहा हूँ
आंखे भर आती है रोज सड़कों पर लोगों को मरते देख
दिल रो उठता है बच्चियों की चीखें,स्त्रियों के ज़ख्म देख
मैने बहुत से सच जान और समझ लिये है
बस साबित करने के लिए उन्होंने कोई साक्ष्य नहीं छोड़े
"स्वीकार "
जानते हो क्या है
समय के साथ तैयार रहो
शोषण की परम्परा को स्वीकार करने के लिए
तैयार रहो चारो ओर कत्ल ए आम देखने को
और तैयार रहो मानवता को मिटते देखने के लिए
बलात्कार,दुर्व्यवहार,उत्पीड़न सब उत्सव होने वाले हैं
अश्लीलता सब संस्कार बन रहे...अपराध मिटने वाले हैं-
अपने लिए जिऊंगा अगले जन्म में
इस जन्म में अब जिम्मेदारियां निभा लेता हूं
-Adv P.V.Patalvanshi ✍️-
महोदय
मैं अब मेरी भी कल्पनाओं से बहुत परे हूँ...
परिवार अगर मुझे बंदिशों में ना बाँध
स्वतंत्र रखता है
मैं उनके खातिर अपनी मोहब्बत
पसन्द,शौक सब त्यागने का वचन देता हूँ
-Adv P.V.Patel✍️
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चल हाथ पकड़
दोनों साथ दुनिया घूमते है
जलने देते है सबको
चल कुदरत के नियमों पर चलते है
तू भूल जा की एक स्त्री है तु
मैं भी स्वयं का पुरुषत्व भुला देता हूं
बन कर घूमते है मित्र जग सारा
एक नए संबन्ध को निभाते है
देखा है मैंने समाज की विचारधारा को
एक स्त्री-पुरूष अच्छे दोस्त नहीं होते
सुन चल हम दोनों मिलकर
इस विचारधारा से लड़ते हैं
चल हाथ पकड़ मेरा
तुझे तेरी पहचान दिलाऊं
गद्दारी मत करना
चल तेरी भी खूबसूरत मंजिल बनाऊं
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हर हसरत-जुस्तजू मेरी तुम
तुम ही मेरी हर इबादत बन बैठे
पहली और आखिरी चाहत मेरी तुम
तुम्हारे ही नाम धड़कनों की हम विरासत कर बैठे
-Kavi✍️
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मैंने अकेले
उनके प्रभुत्व और वर्चस्व को ललकार दिया
वो अब अपने षड्यंत्रों से
मेरे अपनों के जरिये ही मेरा अंत लिख रहे है-