Sweekar "Akrosh"   (Adv. P.V.Patalvanshi✍️)
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Joined 26 July 2020


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11 JUL AT 13:33

#192
दिन बीत चुके है आज इस वर्ष के
हर दिन
मन और दिल के कुछ बात
तो कुछ ज़ज्बात लिखे...

ना मन भरा है ना ही दिल
ना ज़ज्बात खत्म हुए ना अहसास
ना शब्द खत्म हुए ना ही
लिखने का जुनून...

फिर भी बस
खुद की आज फिर एक मौत चुनता हूं

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10 JUL AT 18:32

#191
कुदरत से बड़ा गुरू कोई नही
प्रकृति से मानव ने सब कुछ सिखा है,

रंगो के समन्वय से लेकर
प्यार की अभिव्यक्ति तक

सब कुदरत की ही देन है।

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9 JUL AT 12:00

#190
शिक्षा और डिग्री होते हुए भी
जब आपको अर्द्ध- नग्नता
अश्लील ना लग कर
fashion (शैली) लगने लगे

तो सबसे पहले
अपनी डिग्री को आग लगा
उस डिग्री का सम्मान बचा लेना चाहिए

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8 JUL AT 10:18

#189
झूठ मगर एक सच लिखता हूँ
गीत एक प्रीत के नाम लिखता हूँ
आगाज था सावन का
मौसम में हल्की सी रिमझिम फुहार थी
मदहोश करने वाली थी हवाएँ
और एक खूबसूरत सफर का शुरुआत था
हमसफ़र का हाथ हाथो में
मीठी बातों संग कुछ खट्टी सी शरारत थी
पहुचें थे एक चाय की दुकान पर
दो कप चाय फिर साथ लिया
एक हमारी, एक तुम्हारी
इस ठंड मौसम में गर्म चाय लिया
खैर ! टूट बिखर गया तभी ख्वाब मेरा
जब आंखे मेरी खुल गयी
बंद हुई रिमझिम फुहार भी
हवा भी एकदम ठहर गयी
गहरी नींद में थे वो साथ मेरे
अब हाथ भी उनका छुट गया
पड़ी कि पड़ी रह गयी चाय हमारी
रात ढल गया ,अब दिन निकल गया
-Adv P.V.PATEL✍️

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7 JUL AT 8:02

#188
मैं जानना चाहता हूं
कि पिछले कुछ वर्षों से
भारत की जनसंख्या में संतुलन है
अर्थात्‌ नियमितता के साथ है,

हर एक वस्तु,संसाधन का उपयोग-उपभोग
बढ़ा है
सिवाय शिक्षा को छोड़कर ?

जिस तरह से विभिन्न राज्यों/जिलों में विद्यालय बंद किए जा रहे है
ऐसा लगता है पिछ्ले वर्षों में जो सरकारें थी
इसको बनाने, चलाने में राष्ट्र की संपदा को सिर्फ़ व्यर्थ किया था

क्योंकि हज़ारों,
लाखों की संख्या मे विद्यालय,
महाविद्यालय की तो आवश्कता ही नहीं है अब...

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6 JUL AT 23:00

#187 (ii)
और फिर अंत में
वो सारी किताबें भी
रद्दी के भाव बेची गयी ,

जो कभी किसी को सुनहरा और
कामयाब भविष्य देने के खातिर

किसी पिता के मन में
जगमगाते उमंगों का सहारा ले
उसकी मेहनत,
पसीने की कीमत से खरीदी गयी थी

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6 JUL AT 7:32

#187
एक ही
चेहरे पर,

खत्म हो गयी

जिंदगी की
सारी ख्वाहिशें...
-Kavi✍️

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5 JUL AT 12:49

#186
राष्ट्र की राजनीति ने भी क्या नया अध्याय गढ़ा है
सत्ता पर काबिज राजनेता को चुना गया
कि वो प्रजा हित में काम करें...

खैर! सत्ता का मोह ही ऐसा है
जो भी जब सत्ता में आया अपना
अपनों का हित साधा
तभी तो
जनता को भूल
परमात्मा की सेवा करने लगा

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4 JUL AT 9:45

#185
यह जो बचपन से पाठ पढ़ाया
और सिखाया जाता रहा है

कि
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,

अनुरोध है
कहीं वो किताब, पाठ मिले तो फाड़ उसे जला देना...

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3 JUL AT 18:17

#184
बहुत कम लिखा गया है मौत
और
आत्महत्या के बारे मे इस ज़माने में

मैं लिखूँगा पूरी ग्रंथ
जिसमें बताऊँगा मौत सिर्फ सांसे रूक जाना
प्राण निकल जाना नहीं होता
बल्कि इसके लाखों प्रकार है

और आत्महत्या करना कायरों का काम नहीं
बहुत हिम्मती लोगों का है

यकीन नहीं हो तो
एक रूह उखाड़ कर देख लो अपनी

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