उल्टा दांव वक़्त का पड़ता है
और सीधे हम सब हो जाते हैं
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जाना चाहता हूँ उल्टे पाँव
खोए हुए हमारे गाँवों में...
बट गए लोग सिमेंट कांक्रीट की बेजान दीवारों में
जीते थे इक वक्त कभी खुले आसमान की पनाहों मे
उजाड़ दिए खेत खलिहान शहर बसाने के कामों में...
कट गए वो तरुमित्र सारे खेले थे जिनकी बाहों में...
खुले थे आंगन हमारे, खुलापन भी था दिलों में...
बंद हो गई भावनाओं की खिडकियां बंद हुए दरवाजों मे...
घट गया दायरा अब इन बढ़ते हुए आयामों में...
लगे हैं धोती वाले गांव को सूटबूट पहनाने के कामों में...
खोए हुए हैं हम आज भी कीर्तन की भक्तिमयी उन रातों में...
नींद चैन सब खो बैठे अब रातों के भूतों की बारातों मे....
साथ देती थी ये हवाएं भी सुनसान एकांत भरी राहो मे...
जी रहे हैं अब तो हम भीडभाड वाली तनहाइयों में....
सोचता हूँ मैं भाया कहाँ गया वह गांव मेरा बसता है जो यादों में...
आदत डालनी पड रही है अब जीने की इन फरियादों मे...
जाना चाहता हूँ उल्टे पाँव
खोए हुए हमारे गाँवों मे...-
उल्टा-पुल्टा हैं देश के राजनेताओं का काम
ना करे पूरे पाँच साल में एक भी काम ।।
भ्रष्टाचार से हैं राजनीति की गलियाँ बदनाम
काम करने बोलिए तो है विपक्ष का कार्यकाल बदनाम ।।-
खोल कर रक्खी थी जो अपनी किताब सामने,
हम तो सीधे ही रहे, बस तुम ही उल्टा पढ़ गए।।
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# उल्टा #
'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे'वाली कहावत, आजकल राजनीति में सटीक चरितार्थ हो रही है।-
परिवार और समाज दोनों ही उल्टा पुलटा हो रहे हैं,
जब नेता समझदार शांत और नासमझ भाषण दे रहे हो।-
जिंदगी खुशियों का पिटारा है।
पर इन खुशियों को ढूंढना फर्ज हमारा है।
क्यू सोचे की कुछ उल्टा होगा।
सरल और सहज बनके देखे।
सब अच्छा ही अच्छा होगा।
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मैं कलयुग का इंसान हूं, मैं शैतान हूं।
बात बात पर क्रोधित मैं हो जाता हूं,
ईर्ष्या का भाव मन में लाता हूं।
बुद्धि को भ्रष्ट कर जाता हूं,
लोगों को भड़काता हूं।
हिंसा, द्वेष, क्रोध, ईर्ष्या, लालच, हवस सब मेरी पहचान हैं,
मैं इन नामों से भी जाना जाता हूं।
इंसानियत का कीड़ा मार, मैं इंसान में घर कर जाता हूं।
मैं हूं इतना शक्तिशाली कि पल भर में ही सब कुछ तहसनहस कर जाता हूं।
मैं जीते जी इंसानियत की चिता जलाता हूं,
उनको इंसान से हैवान बनाता हूं।
मैं हूं वो पापी, दुराचारी जो सोच को नकारात्मक बनाता हूं।
मैं अपने अत्याचारों से दुनियां में खौफ़ फैलाता हूं।
मैं हूं लोभ और लालच का कारण जो गरीबों की बेबसी में उनसे गलत काम करवाता हूं,
तो अमीरों को काला धन कमाने के उपाये सुझाता हूं।
मैं जिसपर भी हावी हो जाता हूं, उसकी मति भ्रष्ट कर, सारे उल्टे काम करवाता हूं।
मुझसे ही चलती हैं कलयुग की गाड़ी
तभी तो मैं लोगों का काल बन जाता हूं और कलयुगी कह लाता हूं।
अहंकार हैं मुझमें बसता, मैं कलयुग की पहचान हूं, मैं इंसान में छिपा वो शैतान हूं।।-
मैंने कागज़ पर बिखेरे कुछ शब्दों को
उल्टा सीधा सभी ओर से झाड़कर देखा
पाई -मात्राओं के एक एक कोने को
चुने हुए शब्दों के सरल बिछौने को
रचे गए शब्दों के अंतराल में
कुछ छोटे शब्दों में , कुछ विकराल में
कुछ संधियों के अनुबंधों में
कुछ मुहावरों के संबंधों में
कुछ लोकोउक्तियों के कारणों में
अलंकारों के आवरणों में
चन्द्रमा की सोलह कलाओं में
सूर्य की धधकती ज्वालाओं में
हर जगह खोज की अपने बचपन की
लेकिन मुझे वो गुड़िया के
वस्त्रों वाले सन्दूक में मिला
जिनमे कुछ मेरे सिले फ्रॉक और
मेरी कढ़ाई की हुई साड़ियां थीं ..
और मैं फिर से खेलने लगी अपनी गुड़ियों के साथ 😆-
जल्दबाजी में आज उल्टा पुलटा हो गया
"कॉल था" लिखना था मगर "कुलटा"हो गया-