हाँ... उम्मीद से हूँ मैं
(भाग १)
(Read in caption)
©LightSoul-
देखा है,
गिलोय की बेल को,
अमरूद के पेड़ पे चढ़ते हुए।
हवा, धूप पा कर,
कुछ ही दिनों में वृहत् फैलाव लेते हुए।
किसी ने,
गिलोय की बेल को काट दिया जड़ से,
बचाना था शायद वो पेड़ उसे।
मगर बेल को अब जीने की तमन्ना थी,
चाह हुई उस पेड़ से लिपटे रहना ही,
उसने ऊपर से ही अपनी नई जड़ें निकाली,
और जमीन की और बढ़ा दी,
जीने की ख्वाहिश लिए,
एक नई उम्मीद के साथ।-
ना कोई उम्मीद
ना कोई ख्वाहिश
खाली कमरा दिल मेरा
तन्हाई और अकेलेपन
ने अपना घर बना लिया
हो ज़िन्दगी में जैसे...
ना कोई चाहत
ना कोई तमन्ना
खाली कमरा दिल मेरा
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उम्मीद - ए - क्यों किसी से इतनी तू करता हैं ....
क्या तुझे अपने कंधों पर भरोसा नहीं रहता हैं ।।
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इंसाफ की 'उम्मीद' में सैंकड़ों मौत जब्त हैं,
है उम्मीद पर
.
ये 'उम्मीद' एक ज़िंदा शब्द है।-
साथ तुम छोड़ो या मैं छोड़ू
रिश्ता हमारा खराब होगा...
बेवजह दिल में गिला शिकवा रखने से
उम्मीद का दामन छोड़ने से
रिश्ता हमारा खराब होगा...
छोड़ दो ये रोज की तकरार
मुकद्दर का लिखा
कोई नही मिटा सकता
दूरियां तुम बढाओ या मैं
रिश्ता हमारा खराब होगा......
मिल कर संजोते हैं इस रिश्ते को
कितने भी गीले शिकवे हो
न टूटने देंगे इस बंधन को
अगर बिखरने दिया इस रिश्ते को
तो ना ऐतबार रहेगा ना इकरार होगा
मगर रिश्ता हमारा खराब होगा.......-
तेरे आने की उम्मीद तो नही हैं ,
मग़र ? कैसे कहदू इंतज़ार नहीं हैं ।,,-