जिस शाख़ पर कभी चाँद ठहरता था अपनी ठुड्ढी टिकाए जिस शाख़ पर कभी उसने खरोंच कर लिखा था चाकू से किसी का नाम काट गए म्युनिसिपेलिटी वाले कल शाम उसे इलज़ाम था ताक-झांक करने का सामने के अपार्टमेंट की एक खिड़की में दफ़्न हैं अब भी शज़र के सीने में उसके अहसास हाँ, चाँद ने अब ढूंढ लिया कोई दूसरा आशियां
कभी मिलों तो बताएं हम , इस चाँद पर दाग़ कितने हैं, सारे गिनवाए हम !! बहुत इल्ज़ामों से नवाज़े गए हैं, बेबुनियाद है सारे कहकर, अदालत से तुम्हारी अर्जी खारिज़ करवाएं हम !!