नफ़रत की गर्द उड़ाता चल रहा है आदमी l
यहाँ दम भी जो घुट जाए तो हैरानी कैसी ll
बड़ा बेवक़्त आदमी है वक्त का मारा यहाँ l
ज़ब मिलना ही न हुआ तो फिर जुदाई कैसी ll
बड़ा हँसता है वो शख़्स हाँ मालूम है मुझे l
चमक आँखों में न आए तो फिर हँसाई कैसी ll
हर शख़्स दुवा करता है शिकस्त याब के लिए l
सिर सजदे में ही न हो तो फिर दुआ ही कैसी ll
अनिकेश तुमने उम्र काट दी इश्क़ के शेर कहने में l
गर इश्क़ हुआ ही नही तो फिर ये ग़ज़लाई कैसी ll
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