तमाम बंदिशे मुक़म्मल ऐहतमाम में रहा l
बड़ा बदनाम मैं इश्क़ के मैदान में रहा ll
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नफ़रत की गर्द उड़ाता चल रहा है आदमी l
यहाँ दम भी जो घुट जाए तो हैरानी कैसी ll
बड़ा बेवक़्त आदमी है वक्त का मारा यहाँ l
ज़ब मिलना ही न हुआ तो फिर जुदाई कैसी ll
बड़ा हँसता है वो शख़्स हाँ मालूम है मुझे l
चमक आँखों में न आए तो फिर हँसाई कैसी ll
हर शख़्स दुवा करता है शिकस्त याब के लिए l
सिर सजदे में ही न हो तो फिर दुआ ही कैसी ll
अनिकेश तुमने उम्र काट दी इश्क़ के शेर कहने में l
गर इश्क़ हुआ ही नही तो फिर ये ग़ज़लाई कैसी ll-
इक़बाल रूठ गया है ख़ालिश जोरों पर है l
हमें उनपर ऐतबार है उन्हे ऐतबार गैरों पर है l
महबूब की आदाओ का तो मोहताज हो गया हूँ l
मुझे ऐतराज तो जहां के इन नजारों पर है ll-
तौबा मेरे दर पर सर पटक रहा है कोई l
मैं जानकर अनजान हूँ तो क्या बात है ll-
वो तो मिलते नहीं बस ख़्वाबों का सिलसिला है l
मगर महज़ ख्वाबों से भला इश्क़ कहाँ चला है l
ख़ुद तो छिपे बैठे है अपने खूबसूरत आशियाँ में l
हम सड़को पर खड़े है और उन्हे हमसे ही ग़िला है ll-
निग़ाहों से निगाहें मिली तो अंज़ाम यह हुआ
अंदर तक लूट गया अब ताबीर क्यों करूँ ll
सुनों लाखों है उनको चाहने वाले इस जहां में l
मैं भी जुड़ कर लम्बी वो कतार क्यों करूँll
मुद्दतों बाद उबर पाया लगे पुराने जख्मो से l
लगाकर इश्क़ की इल्लत जिंदगी तूफ़ान क्यों करूँll
इन बोतलों का नशा मुझे अब बेअसर जान पड़ता है
उनके होठो से लग जाऊं ये इश्तियाक़ क्यों करूँll
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हर शख़्स आशना है मेरा इस जहां में l
अदावत-ए-इल्लत से दामन बचाता हूँ ll-
मिटा कर रख दिया हमने इन आँसुओ का वजूद l
ज़िन्दगी के दिए हर ज़ख्म को सदमा बनाता हूँ ll-
इन बहारों की हवा भी हमें अब काटने को दौड़ती है l
इस हवावों में कुछ तरान्नुम मिलाओ यारों ll
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यारों ने कहा क्यों मियां इतना सुर्ख़ नशे में रहते हो l
बड़ा ऐतबार है शराब नहीं जाम-ए-शबाब पीते हो ll
शराब में इतनी मदहोशी कहाँ जो तेरे लहज़े में है l
सच-सच कहो ज़नाब क्या किसी से प्यार करते हो ll-