QUOTES ON #इंसाँ

#इंसाँ quotes

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20 SEP 2018 AT 22:49

मैंने नहीं छोड़ा कभी सच बोलना ,
तुलना मिरी ना हरिश्चंद्र से करो ।

कह दो कि हूँ इंसान जीता जागता ,
डरना पडे तो आप बस खुद से डरो ।

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#इंसाँ और परिंदा

ऐ कुदरत तेरे घर के हम बाशिंदा हो गये।
खुदा की रहमत थी कि इंसाँ नहीं परिंदा हो गये।

उड़ता देखता हूँ कपटी और लालची मनुष्य,
उनके कर्मों से ये खग भी शर्मिंदा हो गये।

है अपार बुद्धि, पर कुटिलता भी कम नहीं,
उस कुटिल बुद्धि से जाति ये चुनिंदा हो गये।

खुदा ने कसर नहीं छोड़ी इक इंसाँ बनाने में,
पर किस श्राप से ये आज इक दरिंदा हो गये ?

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24 SEP 2018 AT 9:39

जितना इंसाँ हूँ उतना खुदा भी तो हूँ

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19 AUG 2017 AT 12:21

'जेब कतरो से सावधान' हर मंदिर मस्ज़िद में लिखा है,
इन आसान शब्दों के बावज़ूद इंसाँ हर दफ़ा लुटा है।

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20 OCT 2019 AT 14:07

मैं पत्थर होता तो कोई और बात थी,
इंसाँ हूँ इसलिए खुदा नही हो सकता !

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20 AUG 2021 AT 21:17

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धू-धू कर घर जलने सबका लगता है
हर इक चेहरा ख़ौफ़ज़दा सा लगता है।1

सबकुछ अपना छोड़ के जाना होगा अब
चकनाचूर हुआ हर सपना लगता है।2

बच्चों की ख़ातिर माँ ने जोड़े हैं हाथ
ख़तरे में दिल का ये टुकड़ा लगता है।3

उनके दिल में रहम न दिखा जो, रत्तीभर
दिल की जगह पत्थर ही रख्खा लगता है।4

आँखों देखा हाल सुनाएगा अब कौन
डर से बशर वो गूँगा बहरा लगता है।5

दोज़ख से बद्दतर होगी जो ज़ीस्त अगर
जीने से बेहतर फिर मरना लगता है।6

क्यों इंसाँ, इंसाँ का दुश्मन है बनता
किसके दिल को ये सब अच्छा लगता है।7

किसने कहा है जाँ से मार के लोगों को
जन्नत का फिर खुलने रस्ता लगता है।8

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7 JAN 2021 AT 9:36

मुझे इंसाँ हीं रहने दे, कि ख़ुदा न बना
पत्थर हो जायेंगे, ज़ियादा न ठुकरा...

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8 MAR 2022 AT 16:08

22 22 22 22
एक पुराने रिश्ते जैसा
काग़ज़ ये दिखता है कैसा।

थोड़ा बिखरा थोड़ा उधड़ा
लेकिन रख्खा बिल्कुल वैसा।

भूल गया वो हम ना भूले
कैसे हो जैसे को तैसा।

किस मुँह से अब तुम्हें बताएँ
यार हुआ है फिर कुछ ऐसा।

इंसाँ की क्या बात "रिया" हो
सबसे ऊपर है अब पैसा।5— % &

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22 AUG 2020 AT 0:27

क्या कहा तुमने मौत का वायरस आ गया हैं
क्या कहा सारी दुनिया में भय सा छा गया हैं
अजी छोड़ो 'ज़नाब' इस वायरस से क्या डरना हैं
इक़ ना इक़ दिन तो इस दुनिया से सबको मरना हैं
इस दुनिया में वायरस तो पहले से ही मौजूद हैं
पल पल बदलते लोगो में इंसाँ कहाँ महफ़ूज़ हैं
दुनिया में पहले राजनीति का वायरस
फ़िर समाजनीति का वायरस
फ़िर व्यापार नीति का वायरस
फ़िर रिश्तों और अपनों का वायरस
जिससे इंसाँ हर रोज़ धोखा खता हैं
और हर पल मर जाता हैं
क्या लोग पहले नहीं मरा करते थे..?
क्या हम पहले बीमार नहीं पड़ते थे..?
ये सारी जेबें भरने की सोज़िशें हैं
ठगों और लुटेरों की मजलिसें हैं
अजी हम तो बस कटने वाले बकरे हैं
जो हमें पानी पिला पिला कर कटते हैं

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2 AUG 2022 AT 10:01

2122 1212 22
एक सपना हसीन टूटेगा
गर हमारा यक़ीन टूटेगा।

इश्क़ में पड़ गया अगर कोई
कितना भी हो ज़हीन टूटेगा।

लाख़ ऊँची उड़ान भरता हो
छोड़कर वो ज़मीन टूटेगा।

है पुराना तो बरक़रार मगर
रिश्ता ताज़ा तरीन टूटेगा।

अपने घर में भी हम रहे मेहमां
सोच कर ये मकीन टूटेगा।

कह दिया ये दिमाग़ ने दिल से
कितना हो बेहतरीन टूटेगा।

क्यों नहीं सोचता ये इंसाँ "रिया"
बन के इक दिन मशीन टूटेगा।

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