Harshwardhan Biyani   (हर्षनाद)
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Joined 31 May 2017


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21 JUN 2019 AT 23:17

माँ ने उसे सूट में लिपटाया,
पिता ने दुपट्टे में,
बहन ने जीन्स टॉप में,
भाई ने लहँगे में,
पति ने उसे साड़ी में लिपटाया,
सास ने पल्लू में,
पुत्र ने कफ़न में।

इन सब के बाद भी
मैंने औरत को सिर्फ़
सादगी में लिपटे देखा है ।

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25 SEP 2018 AT 21:18

अग्नि, नभ, भू, जल और वायु, कितना कुछ था लिखने को, पर
मेरे पंचतत्वों में क्या था कि, बस मैंने तेरा नाम लिखा।

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24 SEP 2017 AT 21:42

मतले, शेर, और ग़ज़ल के जरिए इश्क़ का पैगाम लिखा है।
घुल गया हूँ तुममें कुछ ऐसे कि, मक़ते में भी तुम्हारा नाम लिखा है।

मय तो फ़कत बदनाम है, उतर जाती है चढ़ चढ़कर
मैंने तुम्हारे नैनों में झाँका, और फिर यह जाम लिखा है।

प्रेम, उल्फ़त, प्रीत और मोहब्बत में, फ़र्क नहीं पता है मुझे,
नमस्ते मैंने ख़त के शुरू में, और अंत में सलाम लिखा है।

ठगा सा रह गया हूँ मैं जश्न-ए-उल्फ़त में,
आज दिल ने भी मेरे तुम्हें मेज़बां, और मुझे मेहमान लिखा है।

लुटना, घुटना, फिर पल पल मरना
आवारा रास्तों से क्या डरना, जब इश्क़ ने ख़ूबसूरत अंजाम लिखा है।

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2 SEP 2017 AT 23:43

दुःख मुझे,
तुम्हारें हाथों की लकीरों में नहीं होने का नहीं,
बल्कि माथे की लकीरों में होने का हैं।

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26 AUG 2017 AT 21:01

!!!......हवा.....!!!

किसी समय अगर प्रेमी के यहाँ निर्वात
भी होता तो भी उसका मन प्रियतमा के
दुपट्टे की कही दूर चंचल पुरवाइयो में हुई
सनसनाहट को महसूस कर लिया करता,
आस होती कि उड़ता आँचल
फिर से देह को ढक ले।

शोंख बयारें आज भी मचला करती है,
मगर आशिकों का मन चाहता है कि
दुप्पट्टा तन को ढके नहीं, बल्कि उड़े
और सनसनाहट फिज़ाओ में नही, अरमानों में हो।

प्रेम की हवा अपरिवर्तनीय है,
शायद मन के विचरण की दिशा बदल गयी है।

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8 AUG 2017 AT 21:51

अनन्त प्रेम के असीम आनन्द
की जिस तह तक पहुँचने का
तुमनें प्रयत्न भी नहीं किया,

मैं आज भी उस तह पर
उतरकर तुम्हारें नाम के
प्रेम गीतों से कई शामें
सजा दिया करता हूँ।

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6 AUG 2017 AT 10:04

शब्दों की ताकत,
शब्दों से ताकत,
शब्दों में ताकत,
कही भाव अनकहे तो नहीं रह गए।

शब्दों का जादू,
शब्दों से जादू,
शब्दों में जादू,
कही जादूगर अनदेखा तो नहीं रह गया।

शब्दों का प्रेम,
शब्दों से प्रेम,
शब्दों में प्रेम,
कही प्रेमी अनसुना तो नहीं रह गया।

शब्दों का खेल,
शब्दों से खेल,
शब्दों में खेल,
कही हार अनछुई तो नहीं रह गयी।

शब्दों की जान,
शब्दों से जान,
शब्दों में जान,
कही जानकार अनजान तो नही रह गया।

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6 AUG 2017 AT 1:51

दोस्ती पर लिखता हूँ,
दोस्ती को नहीं लिख पाऊँगा।

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3 AUG 2017 AT 10:29

गर तुम रेशम का धागा हो, तो मैं चुभन की इक सुई सही
आओ प्रीत का एक लिबास बुने,
निज को मुझ में पिरो दो तुम।

गर तुम रेशम की चादर हो,तो मैं काठ की एक सेज सही
आओ स्वप्नजगत की शय्या सजाये,
निज को मुझ पर बिछा दो तुम।

गर तुम रेशम का पर्दा हो, तो मैं आम सा रोशनदान सही
दीदार हो सिर्फ मेरा तुमसे,
मुझ को निज से छुपा लो तुम।

गर तुम रेशम की व्यापारी हो, तो मैं भी सौदागर इक खास सही
आओ विलय करे सबंधो का,
निज को मुझ में मिला दो तुम।

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25 JUL 2017 AT 22:07

वो दरिया में जब तैर रही थी,
मैं निर्मोही, उसे मोहे किनारा।
आज सिंधु तट पर किया आलिंगन,
अब मैं मनमोहक, डूबा वो किनारा। वो स्निग्ध रजनी में महक रही थी,
मैं निस्तेज था, चमके सितारा।
आज पूर्ण निशा में लिया है चुम्बन,
अब मैं हूँ चंदा, टूटा वो सितारा।
वो उसकी धुन पर थिरक रही थी,
मैं था बैरागी, गूंजे इकतारा।
आज की मधुगान की राग अलापित,
अब मैं हूँ सुरमय, खड़का इकतारा। वो बारिश में जब बहक रही थी,
मैं व्याकुल था, झूमें नज़ारा।
आज प्रेम में अश्रु बहे है झर-झर,
अब मैं भीगा और तरसे नज़ारा।

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