Pradeep Agarwal   (अंजान..✍)
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Joined 6 November 2019


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Joined 6 November 2019
16 APR AT 16:22





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5 APR AT 16:22

गुलाब की मानिंद चमकता रहे नूर आपका
रौशन रहे सदा ही जहान में सुरूर आपका

ग़म कोसों दूर रहे बस ख़ुशियाँ आबाद रहे
पूरी हो दिल की तमन्ना न कभी नाशद रहे

दुआ करते कभी न आए ज़ीस्त में परेशानी
सदा बनी रहे आप पर "ख़ुदा" की मेहबानी

पंछियों के जैसे आप सदा यूँही चहकते रहे
फ़ज़ाओं में घुले इत्र की मानिंद महकते रहे

जन्मदिन की देते है आपको ढेर सारी बधाई
सुबह से पेट है खाली अब खिला दो मिठाई — % &



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2 APR AT 17:57

बहुत परेशान रहता है अपनी बीबी से क्योंकि उसकी बीबी
उसकी एक बात नहीं सुनती पहले लड़कियों के कान में सिर्फ
एक छेद हुआ करता था पर अब दस छेद करवा ले तो भी
मजाल है कि वो किसी के बाप की सुन ले इस लिए आज का
आदमी परेशान रहता है दीदी अब इस फोटो वाले आदमी को
ही देख लो क्या हालत हो गई है बेचारे की इसकी बीबी ने भी
इसको फ़कीर बना डाला
🤣🤣🤣🤣🤣😂😂😂😂😂😝😝😝😝

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17 MAR AT 11:12

आदत ऐसी लगी है उसकी
कि हर तरफ़ वो ही वो नज़र आती है

महीने के इक्कतीस दिनों की
हर तारीख़ में बस वो ही नज़र आती है

हर इबादत में उसे ही माँगा है ख़ुदा से
मुझे वो अब मेरी तक़दीर में नज़र आती है

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9 MAR AT 12:34

एक लंबी ख़ामोशी का रिश्ता
है तुम्हारा और मेरा न जाने कब से

पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़िए

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8 MAR AT 19:27

मैं....क्या हूँ...?
पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़िए

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1 MAR AT 0:11

वो दिल पर मेरे यूँ आयतें लिख रही है
कि जैसे मेरे लिए इबादतें लिख रही है

दरीचों पर आकर वो चाँद को देखकर
वो ग़ज़ल में सारी शरारतें लिख रही है

वो छू लेती है अपने एहसासों से मुझे
वो मेरी दिलकश आदतें लिख रही है

वो समझने लगी जब से मुझे अपना
दिल की दीवारों पर बातें लिख रही है

होती है जब कभी वो उदास तो "प्रदीप"
वो अश्कों की जैसे बरसातें लिख रही है

दर्द, उदासी, तन्हाई, रंज-ओ-ग़म देख
वो सारे मौसमों की रिवायतें लिख रही है

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23 FEB AT 0:04

सुनो....जो दिल में है वो बोल भी दो
बंद लबों को तुम अपने खोल भी दो

राज़-ए-दिल अभी पढ़ना है बहुत से
अपने दिल की किताब खोल भी दो

ज़ुबाँ से गर मुमकिन नहीं है कहना
आँखों से ही सही कुछ बोल भी दो

तोला-माशा भर ही तो माँगा था मैंने
मेरे लिए ज़रा सा इश्क़ तोल भी दो

चाँद खड़ा हुआ है कब से दीदार को
दरीचे की कुंडी अब तो खोल भी दो

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15 JAN AT 15:25

दीपक की तरह सदा जलते रहे
राहों में सदा ही तन्हा चलते रहे

उनकी यादों के मौसम में सदा
बस 'दर्द' के ही गुल खिलते रहे

याद आए वो हर दफ़ा बे-हिसाब
और शब भर आँसू निकलते रहे

हम ख़ुद को कभी बदल न सके
पर लोग यहाँ जिस्म बदलते रहे

मेरी ये रूह भी पड़ गई है नीली
ज़हर ज़माने का यूँ निगलते रहे

क्या अदब है यारों गिराकर हमें
लोग भीड़ में आगे निकलते रहे

देखा जब उसे ख़्वाब में रूबरू
सारी रात बस आँसू उबलते रहे

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27 DEC 2023 AT 12:23

लफ़्ज़ों के सहारे एहसासों को
पिरोने की कोशिश करता हूँ
हक़ीक़त में न सही यादों में तुझे
जीने की कोशिश करता हूँ

वो दिन और थे जब हर वक़्त
खिला-खिला रहता था चेहरा
अब तो ज़हर-ए-ग़म ज़िंदगी का
पीने की कोशिश करता हूँ

कभी देखे थे हमने भी साहिब
उम्र-भर साथ रहने के सपने
मगर अब इस दिल को बस
बहलाने की कोशिश करता हूँ

ना जाने किस वक़्त ख़त्म हो जाए
ये ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
नम आँखों से हर पल बस
मुस्कुराने की कोशिश करता हूँ

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