Pradeep Agarwal   (प्रदीप_अग्रवाल_अंजान..✍)
155 Followers · 157 Following

read more
Joined 6 November 2019


read more
Joined 6 November 2019
7 JUL AT 22:25

कि मुझे ग़म नहीं उसने मेरे दिल कितने हिस्सों में तोड़े
ख़ुदा करे कोई उसे भी मेरी तरह बेपनाह चाह के छोड़े

-


10 JUN AT 15:52

एक ही दिन में पढ़ लोगे क्या मुझे
मैंने ख़ुद को लिखने में बरसों लगाएँ है

-


7 JUN AT 13:10

बंद है खिड़कियाँ और दरवाज़ों पर भी लगा है ताला
फिर कैसे चले आते है ये ख़्वाब मेरे कमरे के अंदर..?
कहीं ना कहीं तो रौज़न खुला रह गया है "प्रदीप"

-


25 MAY AT 13:50

ग़मों की आग़ में जलते रहे
तन्हा-तन्हा यूँ ही चलते रहे

उसकी यादों के मौसम में
बस दर्द के फूल खिलते रहे

याद आया वो इस क़दर की
शब-भर आँसू निकलते रहे

हम ख़ुद को बदल ना सके
और लोग जिस्म बदलते रहे

रूह भी पड़ गई हैं मेरी नीली
ज़हर ज़माने का निगलते रहे

क्या अदब है जहाँ का 'प्रदीप'
गिराकर हमें ख़ुद सँभलते रहे

-


11 MAY AT 15:15

माँ की ममता को न भूलो
और न भूलो एक पिता का प्यार

मिलता नहीं इन जैसा जग में
कोई करने वाला प्यार-दुलार

माँ है अगर जननी तो
पिता है बच्चों का पालन-हार

हजार जन्म लेकर भी कभी
चुका न सकोगे इनका उपकार

माँ-बाप का क़र्ज़ चुकाने को तुम्हें
आना पड़ेगा दुनिया में बार-बार

-


4 MAY AT 16:38

लबों पर बे-रुख़ी, दिल में मलाल रहने दो
अब वो हसीं मुलाक़ातों के ख़्याल रहने दो

बाक़ी बचे जो दिन वो भी गुज़र ही जाएँगे
ये वक़्त के उलझे हुए सब सवाल रहने दो

ख़फ़ा है देखो मुझसे ही ये मेरे हर इक़ ग़म
सुनो अब तुम बेमतलब के बवाल रहने दो

उम्र ही कितनी बची इस क़ैद-ए-हयात की
दर्द-ओ-अलम ना पूछो इस साल रहने दो

आँखों के समुंदर में न पूछ है कितना पानी
कुछ दिन तो ज़ख़्मों को ख़ुशहाल रहने दो

क्यूँ इस तरह गुमसुम खड़ी हो तुम ज़िंदगी
आईने के मुक़ाबिल जल्वे-जमाल रहने दो

इस ज़माने में अंजान बना रहना अच्छा है
अजी मतलबी ज़माने की मिसाल रहने दो

-


25 APR AT 20:49

उसकी यादों में अब तो ये ज़ीस्त यूँ ही गुज़र जाएगी
पता नहीं मेरे इस बेजान पैकर को मौत कब आयेगी

-


31 MAR AT 11:11

मत गँवा तू वक़्त अपना मुझको आज़माने में
मैंने कभी वक़्त ज़ाया न किया शौक़ मनाने में

मंडराता रहा साया ग़मों का यूँ मुझपर सदा ही
पर उम्र गुज़ार दी ग़मों को प्यार से सहलाने में

हर पल मशवरे देते थे लोग मुझे यहाँ मुफ़्त में
उनकी फ़ितरत बता गया आईना अनजाने में

हम-दम की महफ़िल में चलता है यूँ ज़िक्र मेरा
उन्हें पता है कि माहिर हूँ मैं दर्द में मुस्कुराने में

निभाई जिसने दोस्ती वो दोस्त बड़े याद आए
वक़्त गुज़रा यारों के संग हँसने और हँसाने में

ऐसा पैसा किस काम का इस दुनिया में प्रदीप
जो दोस्तों को भूल कर साथ निभाए मैख़ाने में

-


9 JAN AT 10:05

ज़माने में लोग इतने बे-ताब और बे-क़रार क्यूँ है
अजी यहाँ लोग ज़रूरत से ज्यादा होशियार क्यूँ है

यहाँ मुँह पे तो सब ही जताते है अपनापन लेकिन
अजी 'साहिब' फिर पीठ पीछे दुश्मन हज़ार क्यूँ है

करते है बड़े ही सलीक़े से मोहब्बत की बातें यारों
फ़िर यहाँ पे लोग ज़हर में डूबे हुए क़िरदार क्यूँ है

खुली क़िताब की तरह ही हैं अपनी तो ज़िंदगानी
मगर उसकी कुछ बातें आज भी राज़-दार क्यूँ है

जब है दिलों में इतनी मोहब्बत इक़ दूजे के लिए
तो फ़िर प्रदीप करते लोग रिश्तों में व्यापार क्यूँ है

-


3 JAN AT 9:13

मैं ख़ुश हूँ ये देख कर आज कल ज़िन्दगी हैरान है
ग़म में भी मुस्कुराता देख मुझे हर कोई परेशान है

ख़ुशी की तलाश में तो हर कोई नज़र आता यहाँ
ढूँढता नहीं कोई मता-ए-ग़म ख़ुदग़र्ज़ हर इंसान है

लगती सदियों से लम्बी ये फ़ुर्क़त की घड़ियाँ यारों
और ख़ुशियाँ जैसे कुछ पल भर की ही मेहमान है

अक्सर देखा है मैंने ग़म ही मिलते हैं मोहब्बत में
कभी ख़ुशी मिले तो लगता जैसे ख़ुदा मेहरबान है

सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू होते है
जो इसे समझ ना सके "प्रदीप" वो बड़ा नादान है

-


Fetching Pradeep Agarwal Quotes