एक दिन चिड़िया उड़ गई
जब अपनो ने ठुकरा दिया
गैरो ने अपना लिया.....
जब ज़िन्दगी का हर दरवाज़ा बन्द
हो गया तब चिड़िया उड़ गई.
बड़ी चाहत थी उसमें आसमान को छूने की
बहुत उम्मीदें थी अपनी कोशिशो पर
उसकी रोते हुए सिसकती हुई आहें
किसी ने ना सुनी.....
तब चिड़िया उड़ गई........
घर मानो जेल लगने लगा था
रोज तिल तिल मरती थी वो
देख कर अपने सपनो को रौंदता
सह न पाई ये सब.......
मौका देख पिंजरे का दरवाजा खोल वो उड़ गई
एक दिन चिड़िया उड़ ही गई..........
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काली रात के साये ने जब मुझे चारो ओर से घेर लिया था.....
तब तुमने ही उम्मीद की किरण दिखाई...
ज़िन्दगी की हार ने इतना लाचार कर दिया था कि फूलों से भी चुभन महसूस होने लगी ....!!!!
खुद अपनी ही परछाई से मैं डरने लगी थी ....
तुम्हारी दस्तक से ज़िन्दगी ऐसे सवरने लगी जैसे मेरी आज़ादी को तुम्हारी ही तलाश थी......
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समाज के रीति रिवाजों में बर्बाद हो गया
अब चरित्रहीन हूँ मैं और आज़ाद हो गया।-
उलझे ख़्वाबों में, ज़िद का थोड़ा स्वाद हूँ..
सब गगन में कैद, मैं पिंजरे में आज़ाद हूँ..-
कुछ यूँ बंधन में बाँध लिया है आप ने हमको,
के गिरह भी न लगाई और आज़ाद भी न रहे..-
इश्क़ के पिंजरे में कैद वो खूबसूरत से दो पंछी ,
उड़ा एक , औऱ दोनों आज़ाद हो गए !
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क़फ़स मे फंसा परिंदा आजाद नहीं होता...
आशियाँ जिसे नसीब ना हो, वो आबाद नही होता....-
आज फिर एक जंग जिंदगी से हारा हूँ मैं
जानता हूँ बदकिस्मत और आवारा हूँ मैं
लहरें जिसकी तोड़ जाती है बार बार आकर
उस बेदर्द दरिया का एक किनारा हूँ मैं
शिकायत नही है मुझे जिंदगी के हालातों से
बिगाड़ी मेरी किस्मत शायद मैंने अपने हाथों से
तब रोता तो भी लोग हंसते, अब भी हंसेंगे
आंसू छुपाए, मैने धोखा किया जज्बातों से
मेरी हंसी के पीछे राज कोई खास तो नहीं
देखो तो मेरा चेहरा कही उदास तो नही ?
बस नफ़रत हो गयी है भीड़ और रोशनी से
डरता हूँ कहीं ये दोनों आस पास तो नही
मुरझा गए फूल अब कोई महक न रही
फिर भी उदास चेहरो को हंसाना चाहता हूँ
जिंदगी से जीतने की कोई कसक न रही
एक जंग मौत से हार जाना चाहता हूँ
आज़ाद हो जाना है फिर दुनिया के कायदों से
दूर कोई जहां होगा कसमों और वायदों से
जहां कोई नही होगा मोहब्बत को तोलने वाला
अपनी जरूरतों, मतलबों और अपने फायदों से-