अनुभूति के
रस में डूबकर
मनोभाव जब
स्थिर हो जाता है
तब भवसागर में
विचारों की वेगवान
अनंत लहरें भी
रोक नहीं पाती
मिलने से....
कल्पना को कवि से
प्रेमी को प्रियतम से
आत्मा को परमात्मा से
बिम्ब को प्रतिबिम्ब से!-
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
यह न मुझसे पूछना, मैं किस दिशा से आ रहा हूँ
है कहाँ वह चरणरेखा, जो कि धोने जा रहा हूँ
पत्थरों की चोट जब उर पर लगे,
एक ही "कलकल" कहो, तो ले चलूँ
मार्ग में तुमको मिलेंगे वात के प्रतिकूल झोंके
दृढ़ शिला के खण्ड होंगे दानवों से राह रोके
यदि प्रपातों के भयानक तुमुल में,
भूल कर भी भय न हो, तो ले चलूँ
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तुम्हारी आत्मा शुद्ध है
तभी तुम सुंदर हो
कुछ लोग तो बदसूरत कहेंगे
सब का देखने का नजरिया एक जैसा नहीं है-
प्रेम को कोई परिभाषित नहीं कर सकता ,
जो स्वयं में सम्पूर्ण उसे खंडित नहीं कर सकता।
आत्मा से प्रेम करने की बातें कही जाती है,
मगर आत्मा से परमात्मा-सा प्रेम कोई कर नहीं सकता।
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त्याग, त्याग
कर-कर के ज़ीवन बीता
सब त्यागने वाले शरीर को
आत्मा त्याग कर एक दिन
ओढ़ लेगी एक नया चोला
आह! ये ज़ीवन का मेला!
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नफरत करने वालों से भी प्यार करो, तो कोई बात बनें।
अपनें जीवन का कुछ यूँ आधार करो, तो कोई बात बनें।
अमीरों की खातिर हर कोई, जान हथेली पे रखता हैं
गरीब के हक में जान निसार करो, तो कोई बात बनें।
बेटी है तो क्या हुआ, उसके भी कुछ अरमान हैं
उसे भी बेटे जैसा दुलार करो, तो कोई बात बनें।
वो दुल्हन बनकर आयी है, तुम्हारे घर आंगन में
उससे मायके वाला प्यार करो, तो कोई बात बनें।
यूँ तो सब सजते-संवरतें हैं, इस शरीर के लिये
तुम "आत्मा का श्रृंगार करो", तो कोई बात बनें।
चूमकर कदम माँ-बाप के, शुरुआत हो दिन की
अपने घर के ऐसे संस्कार करो, तो कोई बात बनें।-
हे परमात्मा...
ख़ुश कर दें हे परमात्मा
हां आज यों मेरी आत्मा
तने दिया जन्म...
तने जन्म दिया हर के द्वार में...
हां तने जन्म दिया अपने द्वार में..
फ़िर क्यों दुःखी है यों मेरी आत्मा
हे परमात्मा....
हां रेे परमात्मा... ख़ुश कर दे!..
सत् चित् आनंद बणा दें... हे परमात्मा...🙏.-
जैसे पतझड़ में सूखे पत्ते झड़ने पर
ठूँठ अकेला रह जाएगा पीछे
मैं रहूंगी बिन आत्मा के इस तन में....
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