QUOTES ON #आत्मघात

#आत्मघात quotes

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झूठ ,अहंकार और धोखा सब धीमें जहर है ,
इन्हें हम पीते खुद है
और समझते हैं कि मरेगा कोई और !!

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#आत्मघात
क्या हुआ इस पीढ़ी को ,मुक्तिमार्ग क्यों अपना रही है
मृत्यु से जीवन खीचने वाली,ऐसे कैसे बिखर जा रही है
माना जिंदगी की मुसाफिरी में संघर्ष बहुत है
पर चंद गड्ढो में दम तोड़ती नजर आ रही है
बुलंदी मुक्कममल होने से जरा कतराई क्या
ये तो जिंदगी को अपनाने से मुकर जा रही है
भारी जवानी में यूं बेजारियत से जुदा होना
अम्मा बाउजी को ये नजराना अखर जा रही है
जुझारूपन , दृढ़निश्चय ,जुनून संघर्ष सब कहाँ है
क्यों एक हार से खुद को मिटाती नजर आ रही है
फांसी ,नदी, जहर, आग से खुद को बुझाती
चंद झोकों से तास की तरह बिखर जा रही है
ये प्रचलन रोको ,यही साहस दिखाओ जीने में
क्यों समस्याओं से भिड़ने से मुकर जा रही है
ये उम्र है लड़ने की,ऊंची बुलंदियों पर चढ़ने की
पर ये फ़ंना होने की जद में मिटती जा रही है।
ये हार जीत ,दिल का टुटना जुड़ना सब खेल है
पर गमों से सिमटी ये मौत से लिपटी जा रही है
यू न हो रुषवा यू न टूटो यू न बिखरो ,, लड़ो
तुम्हारी कायरता की कहानी बिकती जा रही है
तेरी इस भीरुता की वजह कितनी भयावह क्यों न हो
ये डगर त्राषदअंत को ओर बढ़ती जा रही है
क्या हुआ इस पीढ़ी को ,मुक्तिमार्ग क्यों अपना रही है
मृत्यु से जीवन खीचने वाली,ऐसे कैसे बिखर जा रही है

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26 JUL 2020 AT 20:33

मेरे दिल में एक सवाल उठता है ,
जो मेरे मन को झिंझोड़ देता है,
क्यों आज सड़क पर बच्चा हाथ फैलता है
क्यों वह हर किसी की दया का पत्र बनता है
क्यों उसे पढ़ने -लिखने का अधिकार नहीं मिलता हैं
क्यों उसको अपनी आत्मा का घात करना पड़ता है
अब देखना यह है कि देश कब जाग उठता है ??

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20 MAR 2022 AT 18:31

"आत्मघात"......
(दण्ड या मुक्ति)


धन का अभाव ही तो बना था परेशानी की जड़ बिलसंडा गाँव के पुनीत जी के लिए। बिटिया बड़ी हो रही थी और बेटा....वो तो पढ़ लिख गया पर किस्मत की मार ऐसी की कहीं काम न मिला।
उसकी पढ़ाई के लिए ही तो पुनीत जी ने लिया था बैंक से ऋण....सोंचा था कि बेटा कमाने लगेगा तो ये ऋण चुका देंगे पर जो सोंचो वो आसानी से होता कहाँ है??

बस यहीं से शुरू हुई कहानी दण्ड या मुक्ति की.....

बेटी होनहार थी, आगे उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी और फिर ब्याह के लिए भी तो धन इकट्ठा करना था न। सब धरा का धरा रह गया।
पुनीत जी की पत्नी को कैंसर हो गया और सारा जेवर भी बिक गया इलाज में। परन्तु पुनीत जी की पत्नी अब भी सुरक्षित नहीं हैं। घर में भोजन की कमी रहने लगी। कर्ज़ लेकर बिटिया को भी पढ़ने भेज दिया पर अब आगे के खर्च कैसे हों।

समय बीतता गया और कर्ज़ बढ़ता गया। न बेटे की नौकरी लगी पत्नी के प्राण बचे। पुनीत जी टूट गए थे। बाजार जाएं तो कर्जदारों का सामना करना मुश्किल, घर रहें तो भूख प्राण लेने को आतुर।

धीरे धीरे बेटा गलत संगत में चला गया और लत लग गयी जुए-शराब की। पहले ही क्या कम विनाश हुआ था घर का जो अब ये सब। बस बिटिया दूर थी इन जंजालों से। उसे भी कब तक पता न चलते घर के हालात। आ गयी वापस पढाई छोड़ के।

उसके इस फैसले से जो कर्ज़ लेकर उसे पढ़ाया था वो भी व्यर्थ हो गया।
— % &अब पुनीत जी के आगे कोई मार्ग शेष नहीं था। उन्होंने आत्मघात (आत्महत्या) कर लिया।

अब प्रश्न ये है कि इस आत्महत्या से पुनीत जी को मुश्किलों से मुक्ति मिल गयी या अगले जन्म में इस जघन्य अपराध के फल को भोगने के लिए ख़ुद को और कठिनाइयों में धँसा लिया।

या सच में सब मुश्किलें हल हो गईं। दण्ड किसे मिला उनके इस अपराध का??....... निश्चित रूप से बिटिया को...... बेटा तो वैसे भी नशे में धुत्त पड़ा है तो उसे तो फ़र्क ही नहीं पड़ा होगा न।

इस कहानी का उद्देश्य बस इतना समझाना ही है कि आत्महत्या कर लेना परेशानियों का हल नहीं होता। हमारे पीछे जो अपने हम छोड़कर जाते हैं उनके लिए परेशानियाँ और बढ़ जाती हैं। यदि आप अपनों से प्यार करते हो तो ऐसा कदम कभी न उठाना।

🙏...🙏...🙏...🙏...🙏...🙏...🙏...🙏...— % &

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23 NOV 2021 AT 23:53

.....आत्मघात क्यों .....
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क्या हुआ जो बातें चुभ गईं !
चुभते तो गुलाब के काँटें भी हैं ।
जीवन में असफलता ही मिली ,
क्या मंज़िलों की कमी है जग में !
क्या हुआ जो संबंधों में दरार आ गई !
रिश्तों को ढोने की मज़बूरी तो नहीं।
क्या हुआ गर अकेलापन सताने लगा !
जीवन में आना- जाना भी अकेले ही है।
क्या हुआ जो मुफ़लिसी सताने लगी ,
फूटपाथ पर जीर्ण व्यक्ति भी जीना चाहता है।
दुःख है तभी तो सुख की खोज है आनंद है,
नाक़ामी ही क़ामयाबी की दास्ताँ बनती है।
क्या हुआ जो जज़्बातों से खेल गया कोई !
प्रेम में जीते रहना ही इश्क़ की गहराई है।
अमूल्य तोहफ़ा जीवन का माता-पिता ने दिया,
क्यों उनकी ओर तुमने ज़रा भी नहीं देखा।
स्वयं को इतना निकृष्ट, तुच्छ और बेकार क्यों माना !
आँकलन तेरा कोई और करे ये हक़ क्यों दिया ग़ैरों को ।
आत्मघात तो हार का प्रतीक है ये कोई समाधान नहीं,
भावनाओं पर नियंत्रण ना होना साहस तो नहीं।
--𝐍𝐢𝐯𝐞𝐝𝐢𝐭𝐚




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5 APR 2022 AT 21:59

जब अपने ही आत्मघात करते हैं
बिना सोचे समझे इल्ज़ाम लगाते हैं

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4 FEB 2021 AT 22:56

माणसाकडे जर अहंकार, मीपणा आणि
समोरच्याचा अपमान करण्याची खोड
अश्या दुर्गुणाची वाढ झाली की
तो माणूस स्वतःच्या हाताने
स्वतःचाच सर्वनाश करून घेतो.

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