प्रज्ञा मिश्र   (Pragya Mishra 'पद्मजा')
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Content Creator, Podcaster , Blogger at Shatdalradio, Radio Playback India and Mentza
Joined 20 September 2018


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मुश्किल है अपने बारे में
ऐसे बताना कि चुप भी रहें
और सबर भी न हो
सिमटा पड़ा है मेज़ पर
गागर में सागर
किसी को खबर भी न हो।

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निर्णय जो फांस की तरह गड़े हैं
उनपर कितनी मीटिंग बुलाओगी
जिनपर समय नहीं देना चाहिए
वे बातें कितनी बार दोहराओगी

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आज प्यारी हो
कल प्रतिद्वंदी रहोगी,
जैसे किरकिरी आंख की
सब अच्छा करने कहेंगे
लेकिन नहीं सह सकेंगे
तुम्हारा उनसे आगे बढ़ना

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सब्र और चुप्पी
हे ईश्वर हमें दो
ये दो खूबी

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सिलबट्टे सा बैठा है दिल
कोई बुरा सपना आया हो जैसे
थकान की चादर में लिपटी है सुबह
रात ने आतंक मचाया हो जैसे
रोज़नामचे का पन्ना कोरा रह गया
मन का बोझ
कलम पर उतर आया हो जैसे

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सिलबट्टे सा बैठा है दिल
कोई बुरा सपना आया हो जैसे
थकान की चादर में लिपटी है सुबह
रात ने आतंक मचाया हो जैसे
रोज़नामचे का पन्ना कोरा रह गया
मन का बोझ
कलम पर उतर आया हो जैसे

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कठिनाइयां पराजित नहीं करतीं,
जिस तरीके से करते हैं
कठिनाइयों का निपटान
उससे तय होती है जय पराजय

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एक बगीचा फूलों से भरा
रोज़ सवेरे बुला रहा है मुझे
एक तितली मेरी उंगलियों पर
अपना रंग छोड़ गई है

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चूंकि सत्य एक ही है,
इसलिए सब रास्ते
उसी ओर जाते हैं,
"वैसा होता तो ऐसा होता"
ऐसा सोचना ही
चित्त की दुर्बलता है,
भटकाव है, चुनौती है
इसे स्वीकार करो
अपने आप से बात करो

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तुम्हारे बारे में उन सभी से बात हुई
जो समकालीन थे तुम्हारे
तुम सबको याद थी
सबसे करीबी लोगों के सिवा

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