प्रज्ञा मिश्र   (Pragya Mishra 'पद्मजा')
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Content Creator, Podcaster , Blogger at Shatdalradio, Radio Playback India and Mentza
Joined 20 September 2018


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जैसे हमारे लिए सोशल मीडिया
वैसे देवदास के लिए मदिरा
सब यही कहेंगे कि छोड़ दो

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अनुपमेय सुखों और दुखों में
जीवन बीत जायेगा
दर्ज होने न होने के बीच
वर्तमान घटित होता जायेगा
विगत स्मृति बन कर
सामने से निकल जायेगा,
एक समय यात्री की तरह
पल छिन खोजेगा मन

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तुम्हारा आकाश भर प्रेम
इतना दूर है कि
महसूस नहीं होता
टूरिस्ट बने बादल
उनसे घर नहीं बनता

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देखो तो ऐसे देखो कि भांप लो,
सुनो तो ऐसे सुनो की सूंघ लो,
बोलो तो वही बोलो जो तर्क हो,
तुम्हारा देखना सुनना कहना
तुम्हारी रक्षा करे

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भीतर पसरे खालीपन
को भरने के लिए
न सुनाई देने वाली ध्वनि
प्रवेश रही है
उसे सुनने के लिए
खुद को खाली रखना होगा
समय रहते सुनना होगा

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एक बेटी जब स्त्री अधिकार की बात करेगी
इस प्रक्रिया में वो पहले माँ बाप से लड़ेगी।

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जब अपनी बर्बादी का हिसाब होगा
सबसे पहले सबसे अपनों के साथ होगा

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बसर कैसे होगी
हर किसी पर असर
चाहने लगी ज़िंदगी

बेमतलब के लोग
बेमतलब के रिश्ते
निबाहने लगी ज़िंदगी

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सूचना प्रोद्योगिकी की बाधा दौड़ में
सूटबूट का भारतीय मैनेजर
बस जीसर जीसर करता है
पहले बस अंग्रेज़ों का डर था
अब वह जर्मन,अफ्रीकी,अमरीकी, ईरानी
डच, फ्रांसीसी, चीनी, जापानी से भी
ठिठुर ठिठुर कर डरता है

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ये भी कोई ज़िंदगी है
ऊपर से हरे तरबूज़ सी ताज़ी
भीतर से हारी हुई
लाल लहू लुहान

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