शुभम सांकृत्यायन   (Shubham sankrityayan)
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Joined 16 January 2019


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Joined 16 January 2019

एक ख्वाब है
तेरे संग खूबसूरत सफरनामे का
शहर की कोलाहल से दूर
कही दूर निकल जाने का
न कोई फ़ोन कॉल
न किसी की आहट
बस तुम और हम
और हमारी सांसों की टकराहट
खुले आसमा में पहाड़ो के बीच
बर्फीली वादियां हो
बंदिशों से परे बेपरवाह
कुछ अनकहीं गुस्ताखियां हों
नदी का किनारा हो
हाथों में हाथ तुम्हारा हो
लहरों की धुन में सुकून हो
तुझमे खोने का जुनून हो
सुर्ख लबों पे लबों का पहरा हो
मानो वक्त बस वही पर ठहरा हो
हाथों में चाय का प्याला
और आंखों में तुम्हारा नशा
नीली चादर ओढ़े जमी
पिघलती हुए शमा
बदलो के बीच
कुछ लम्हों के आशियाने का
एक ख्वाब है
तेरे संग खूबसूरत सफरनामे का।

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दिल मे अंधेरा था अंधेरा ही रह गया
इस बार भी मैं बे रंगा ही रह गया
तेरे हसीन गालों का इंतज़ार करते करते
हाथों में गुलाल भी अकेला ही रह गया

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मोहब्बत में खुद को बर्बाद होते देखा है
बेवफाई की जलन में खाक होते देखा है
उसकी अदाकारी को यथार्थ मान बैठे
भोले भाले को भी फ़रहाद होते देखा है।

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मोहब्बत से अब फासला कर लिया मैंने
बार बार खुद को साबित करना अब और नही होगा
राहगीर हूं मुझे मुसाफ़ीरी से मोहब्बत है
मंजिलो का साया बनना अब और नही होगा

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मोहब्बत से अब फासला कर लिया मैंने
बार बार खुद को साबित करना अब और नही होगा
राहगीर हूं मुझे मुसाफ़ीरी से मोहब्बत है
मंजिलो का साया बनना अब और नही होगा

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मैं तुझे कैसे बताऊं की मैं अपनी मोहब्बत में कितना असर चाहता हूं।
मैं तेरे लिए गुलाब से लेकर धनिया खरीदने तक का सफर चाहता हूँ।

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समझ न पाओ इतना मुश्किल नही हूँ
प्यार मैं भी जानता हूं, जाहिल नही हूँ।

तुम्हारी हर अदा से मोहब्बत है हमको
बस तुम्हे जीत पाने के काबिल नही हूँ।

तुम्हारा दिल बसेरा है किसी गैर का
मैं दूर दूर तक उसमे शामिल नही हूँ।

धड़कने चुप है सांसे थम सी गयी हैं
तुम बिन मैं जरा सा भी कामिल नही हूँ।

पर तुम्हारी नज़र अंदाज़गी से जाहिर है
मैं तो बस रहगुज़र हूँ मंजिल नही हूँ।

बार बार हमें लोग दरकिनार कर देते हैं
इश्क से, पर मैं इतना भी हाइल नही हूँ।

प्यार में इतना गिर जाना भी ठीक नहीं
पर अब संभाल गया हूं ग़ाफ़िल नही हूँ।

अब मैंने खुद्दारी से जीना सीख लिया है
सिर्फ तूमसे हो रौशन ऐसी महफ़िल नही हूँ।

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तुम्हारी ख्वाइश में अपना जमीर नही बेच सकता
हा एक तरफ़ा ही सही पर हद से ज्यादा चाहता हु
पर बहुत झुका , बहुत मिन्नतें मांगी तेरी खातिर
अब अपना फलसफा है,की खुद को ज्यादा चाहता हूँ

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बहुत रोका मैंने खुद को
की फिर से तेरी आरज़ू न हो
पर तुझे देखने के बाद ये कैसे
हो सकता है कि दिल बेकाबू न हो

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#तन्हाई
मुसलसल मुंतज़िर में तेरे ,सब्र का बांध टूट रहा
तेरे आने की उम्मीदों में दिल धड़कनो से जूझ रहा
ये तन्हाई ,मायूसी,ये दिल का उठा पटक कब तक?
लिख लिख के तेरी आस अब सांसो से संगम छूट रहा।

इस बंजर जमी में बागान की आस लिए बैठा है
पथराई आंखों से बाट जोहते, तेरी प्यास लिए बैठा है
यू तो दिल्लगी बहुत होती है पर मोहब्बत नही होती
ये दिल तुझसे अपनी मोहब्बत की आस लिए बैठा है।

उंगलियों को तलाश है तुम्हारे जुल्फों की छुवन का
इन नैनो को तलाश है तुम्हारे दीदार -ए - सुखन का
यू न मुझको सजा दे ,अरे कुछ तो अपना पता दे
की ये ख्वाब कब मुकम्मल होगा, तेरे मेरे यवन का।

कल्पना हो मेरी फिर भी ,तुम्हारी बात लिखता हूं
जैसे अनगिनत पन्नो की कोई किताब लिखता हूँ
हमारी हर इबारत में तुम्हारी ही इबादत होती है
मैं खुद को धूमकेतु ,तुमको आफताब लिखता हूं।

मेरे सपनों की सहजादी, मेरी कल्पनाओ का राज हो
जो तन्हाइयों में चैनों सुखन दे तुम वही एहसास हो
लोग पूछते रहते हैं किसकी दास्तान लिखते हो तुम
मैं उन्हें कैसे बताऊं की तुम तो फ़क़त मेरा ख्वाब हो।।

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