इतने आईने नहीं होंगे घर में मेरे,
जितने चेहरे पहनकर हर रोज़ उतार देता हूँ मैं।-
रो तू रहा
आंसू सिर्फ मुझमें क्यों है
दर्द भरी निगाह सिर्फ मेरी क्यों है
ये तुम ही तो हो फिर ,
मेरे पास तुझ जैसे नकाब क्यों नहीं
पूछता है आईना
ये तुमने अभी अभी जो मुस्कुराया है
ये मेरे चेहरे से दूर क्यों है
क्यों तेरे परिचय मुझसे मिलते नहीं
क्यों तेरे चेहरे मुझसे छुपते नहीं-
गुजरते आज देखा ख़ुद को
जब आईने में पड़ी नज़र,
ख़ुद को ही पहचानने में
लग गयी सारी उम्र,
चेहरे से मेरे ही मैं
यह बिछुड़ गया किस क़दर,
आंखों से निकल कर
जो थम गया होठों पऱ,
ईक आँसू बता गया
सारी ज़िन्दगी का सफ़र..!-
अब परछाईयों की आग़ोश में |
एहसास भी कुछ बिखर गए है,
यूँ जज़्बातों की आग़ोश में |-
आईना धुँधला गया है या
तुम्हारा जिक्र फिर आ गया है।
जिस अक्स की तलाश थी मुझे,
वो चेहरा क्यों मुरझा गया है।
ये दिल का सुलगना है या
कोई इश्क की तिली जला गया है?
जिस दिल को पत्थर बनाया था कभी,
उसे फिर से जीना आ गया है।
आईना मुख़तलिफ़ है या
इश्क़ का वो दौर बदल गया है।
जज्बातों के ढेर को दामन में समेटकर,
तेरे इश्क़ का कब्र बनाने आ गया है।-
मुझ से कौन हो तुम
क्या है तुम्हारी पहचान बताओ मुझे
मैं ने कहा मैं चंद साँसों के सहारे
चलने वाला मामूली सा खिलौना हूँ-
हौसला रख़ ए वक्त के मुसाफ़िर,
ये जो आईना तेरे तालीम की गवाह बना हैं,
उसे जरूर एक दिन तुझपे फक्र होगा।-
आइना धुंधला गया हे,
सब जगह सन्नाटा सा हो गया है
जैसे सब कुछ ठहेर सा गया है
रोना भी जैसे दूसवार सा हो गया हे,
जैसे अक्श भी मुरझा सा गया है,
अब तो बस सब कुछ बे रंग सा हो गया हे...
अब तो बस आइना धुंधला सा गया हे...-