कब गई, कैसे गई, पर वो चली गई
कोई आस नहीं, कोई पास नहीं
कुछ होश नहीं, हां कोई दोष नहीं
अपने ख्याबों में ही कहीं खो गई
सोना नहीं चाहती थी,मिट्टी में ही सो गई.....
-
बुझते अफसानों में कहाँ प्रवेश करते हो?
मिलेंगे नही तुम्हें वहाँ कोई भी किरदार
जो ये बोलने के लिए तैयार हो कि मैं
हूँ साथ तुम्हारे ।-
रखे हैं अफसाने कई दिल में दबाके ,
उसे बहुत मजा आता है मुझे जलाके|
अब तो दिल में दर्दों का उबाल आया है ,
जो बन्द रखा था मैने न जाने कब से छुपाके |-
हमने जो की थी मुहब्बत आज भी है
तेरी बाहों में सर रखने की चाहत आज भी है
रात काटती है आज भी ख़यालो में तेरे
दीवानों सी वो हालात आज भी है
किसी और के तसव्वुर को उठती नही
बेइमा आँखों में थोड़ी सी शराफ़त आज भी है
चाह के एक बार चाहे फिर छोड़ देना तुम
चाह के एक बार चाहे फिर छोड़ देना तुम
दिल तोड़ जाने की इजाज़त आज भी है...
-
जमाने पहले किसी ने अपना वक्त दिया था
मैं आज भी उसी मोहब्बत के अफसाने लिख रहीं हूं-
भूलने भुलाने के
दिमाग के अफसानों मे
दिल ही हमेशा
क्यों घायल होता है!-
बहा कर अश्क-ए-ख़ूँ खींची थीं जो आईना-ए-दिल में,
हमें ऐ दिल वो अफ़्साने अभी तक याद आते हैं।-
करे जो औरत पर अत्याचार,
वो मर्द कैसा?
दर्द दे जो किसी को,
फिर वो हमदर्द कैसा?-