आज स्वर्ग में होगा स्वागत
धरती की एक अप्सरा का-
मैं हूं मेनका, तुम विश्वामित्र प्रिए
मैं हूं मौन, तुम बोलता चलचित्र प्रिए
मैं बहुत साधारण सी तुम विचित्र प्रिए
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बसाया इन आंखों में फिर ये आंखे ना सोई
तड़पा दिल आंखें बेवक्त रोई
बैठा लिया अपने मन के मंदिर में
कुछ इस तरह से जैसे हो देवी कोई
खूबसूरत सी सूरत थी या कल्पना की मूरत
मींचता हूँ खोलता हूँ आँख अपनी
सोचता हूँ ख़्वाब था या थी अप्सरा कोई-
नज़ाकत, उल्फ़त और शरारत का पैमाना है
वो नाज़नीं छलकता जाम, वही मयख़ाना है
कहने को, दिखने को है, वो भी आदमज़ाद
असल में परी, अप्सरा, ख़ुदा का नज़राना है
- साकेत गर्ग-
क्या हो तुम ,, कहा हो तुम, क्या हवा हो तुम,
आती हो पास मेरे , क्या भगवान की कृपा हो तुम,,
❤️❤️❤️❤️
मकंदर रस सी महकती हो तुम, प्रकृति का श्रृंगार हो तुम,,
जिसको लब्जो में ना लिख पाऊं , वो वेदांत का सार हो तुम,,
❤️❤️❤️❤️
मेरे मंत्र की ऊर्जा हो तुम, दुनिया को बस में कर लू वो यंत्र हो तुम,,
शिव के नाद सी हो तुम, मां पार्वती के आशीर्वाद सी हो तुम,
❤️❤️❤️❤️
मेरा भाग्य ही तुम ही हो , मेरा सौभाग्य भी तुम ही हो,,
धर्म अर्थ, भी तुम , काम भी तुम, मोक्ष तक ले जाए वो रास्ता भी तुम,,
❤️❤️❤️❤️
मेरी तड़प भी तुम, मेरी कामना भी तुम, मेरी भक्ति भी तुम ,आराधना भी तुम,,
महादेव का आशीर्वाद हो तुम, महागणपति का प्रसाद हो तुम, भगवती की इच्छा हो तुम,,
🌹🙏🙏🙏
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पहली बार जब तुम, मुझे दिखी थी
फ़िरते इस बंजारे को, 'मंज़िल' दिखी थी
वो 'बांकपन', वो 'यौवन', वो 'शोखियाँ' दिखी थी
बिन पिये 'मय' मुझे, मस्तियाँ दिखी थी
वो दो उंगलियों में फँसकर
बालों का.. कान के पीछे जाना
ठीक उसी समय, नज़रों का 'झुक' जाना
मुझे किसी 'फ़कीर' की, 'बन्दगी' दिखी थी
धीरे से उन, आँखों का हिलना
मुझसे हटना.. मुझसे मिलना
कड़कती धूप में, ठंडी 'छाँव' दिखी थी
मेरे चेहरे पर जब तुम्हें, हँसी दिखी थी
तुम्हारें हाथों पर मुझे, ठंडी 'सिरहन' दिखी थी
बातों में 'बचपना', आंखों में 'अपनापन'
तुम मुझे चहकती-गाती, 'नाज़नीं' दिखी थी
वो 'शर्म-ओ-हया', वो 'बेबाकपन',
वो 'घबराहट' दिखी थी
वो 'लड़कपन', वो 'सादगी',
वो 'मुस्कुराहट' दिखी थी
ना लाग, ना लपेट, ना पाखण्ड
तुम मुझे हसीन सी कोई, 'अप्सरा' दिखी थी
पहली बार जब तुम, मुझे दिखी थी..
सच कहता हूँ..मुझे आसामन से उतरती
मेरी 'ज़िंदगी' दिखी थी
- साकेत गर्ग-
चका चौंध कुछ ज़्यादा है आजकल इस शहर में,
सुना है एक अप्सरा आई हुई है।
एक नज़र भर देखने को उसे, लाखों ने
उसके छज्जे पर टकटकी लगाई हुई है।
सूरज और चांद भी साथ नज़र आए है आसमां पर
जो वो ज़ुल्फें सुखाने छत पे आई हुई है
घंटों से बैठे हैं सब दरवाज़े पे उसके,
जो किसीने उसके बाहर आने की अफवाह फैलाई हुई है।
बंद खिड़की से उसके आज रोशनी दिखी है,
लगता है आज फिर उसने बिंदी लगाई हुई है।
सृंगार कर पहली बार निकली है वो घर से,
ये खबर सुनके, आज लाशों को भी मौत आई हुई है-
वो दौर ए जिंदगी भी कमाल की होती हैं न जब सारी दुनिया आपकी होना चाहें और आप किसी एक हमनशीं के ख़्वाबों में खोए हुए हो....
वो लम्हा भी कितना दिलनशीं सा होता हैं न जब सारी दुनिया चाहें कि आप का नामोनिशान मिट जाए और आप एक अप्सरा की दुआओं में महफूज से जिंदगी को आराम से जिए जा रहे हो....-
तुम ध्यान भटकाती अप्सरा हो,
मैं तपस्या में लीन प्रिय ।
मैं शांत श्रीलंका सा, तुम धोकेबाज चीन प्रिय ।।
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