और कुछ अपने ऐसे भी मिले
जिन्होंने अपनों की परिभाषा ही बदल दी ।-
मुफ़लिसी है आजकल रहबर की
हर रास्ते ने खुदको धोखेबाज़ बना रखा है
मेरे अपने हो तो पढ़ सकते हो मुझे
मैंने चेहरे को उर्दू का अखबार बना रखा है
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कुछ रियायतें अता कर दो, मेरे अपने हो गैर नहीं,
सजा टूट कर जीने की है, मौत की नहीं !!
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अपनो से दगा कहाँ पाक होता है
शाख से अलग पत्ता खाक होता है-
अपनों पर शक का कोई इलाज नहीं,
और गैरों पर अपने हक़ का कोई हिसाब नहीं।-
जैसे सुनहरे सपनें हैं
पर उनको ही रास नहीं आता जो कहते मेरे अपने हैं-
अपनों को उनके
अपनों से बिछड़ते हुए
देखने का दुख़ ज्यादा गहरा
और दर्दनाक होता है।-
थाम कर मेरे मेहंदी वाले हाथों को
जब तुम चूमा करते हो...
सरसराहट सी हो जाती है सांसो में
तुम यू बेचेंन कर जाते हो...
लबों से तो खामोश रहते हो तुम
मगर आँखों से बहुत कुछ कह जाते हो.....
फिर उलझ जाते हो तुम अपने कामो में
हमे सनम खुद में ही उलझा जाते हो....-