गीतेय जय   (◦•●◉✿🅙🅟✿◉●•◦)
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Joined 10 February 2019


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14 APR AT 23:25

मेरी यादों के आशियाने में सदियों से बसते आ रहे हो
तुम इतना मुस्कुरा रहे हो मेरी आँखों से बहते जा रहे हो !

बस तुम्हें सोचने भर से मुसलसल साँसें चलती रहती हैं
पिघलता नहीं जो पत्थर कैसे उसमे धड़कते जा रहे हो !

शून्य में खोजती निगाहें एक तस्वीर शीतल चाँदनी की
कल्पनाओं के आसमान में बादलों में उभरते जा रहे हो !

सोया सोया है हर अंग बदमाश ख़्याल जागते रहते हैं
ऊँघती झपकियों के सिलसिलों में भटकते जा रहे हो !

इन हवाओं की नमी से पूछता हूँ अहसास तेरी छुअन का
आग इश्क़ की तेज़ है राख़ में भी भड़कते जा रहे हो !

खिले गुलों की महक की उम्र बस कुछ लम्हों की मोहताज
पन्नों में बन्द गुलाब स्याही बन ग़ज़लों में बिखरते जा रहे हो !!

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4 MAR AT 14:54

ख़्वाबों के गाँव मोहब्बत की फ़सल खूब लहलहाती रही
रात ऐसा बदला मौसम बरसात का मैं ही बंजर हो गया !

फूलों को उम्र भर देकर क़तरा क़तरा टूटे थे शाख़ से अभी
कुचले ज़र्द पत्तो को कौन देखता है वो ही मंज़र हो गया !

सीधे सादे लोग थे हर-सू कटते ही रहे शीशम देवदार
नज़दीकियाँ चुभती बहुत हैं मेरी मैं ही कीकर हो गया !

कौन सा रँग है इस इश्क़ का और लहु का कौन सा रँग
इंतहा-ए-दर्द तक दिल कुरेदता रहा मैं ही नश्तर हो गया !

मुस्कानों के निर्वात को होती रही गले लगने की हसरत
उनकी आरज़ू हुई ठोकर की और मैं ही पत्थर हो गया !

हर बार पिघल जाने से कैसे होता परस्तिश के काबिल
चोट दर चोट टूटा खुदा होने तक मैं ही मन्नत हो गया !!

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27 FEB AT 23:29

साँझ ने फिर ओढ़ी लाल चुनर सूरज को पिघलाने लगी
खूबसूरत मंजर अम्बर पर फिर क्यों उदासी छाने लगी !

भूखी प्यासी दिन भर भटकी तेरी यादें कुलबुलाने लगी
छुपी थी रौशनी के पर्दों में अंधेरा होते ही नज़र आने लगी !

नर्म अहसासों का कम्बल ओढ़कर यादें भिनभिनाने लगीं
करवटें बदल बदल कर ख्यालों में रात टिमटिमाने लगी !

धड़कनें छिपकली की कटी पूँछ जैसे छटपटाने लगी
आँख बंद करते ही ज़ालिम तस्वीर तेरी मुस्कुराने लगी !

जो घड़ियाँ बीती थी साथ खिड़की से कूद सिरहाने लगी
ख़्वाबों का क्या भरोसा सोच नींद भी हिचकिचाने लगी !

ताजमहल में गूँजती आधी पुती दीवारें बतियाने लगी
सीने से लगाने की चाह में सूनी बाहें कसमसाने लगी !!

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19 FEB AT 22:59

ओखली में ग़मों को कूटकर खूब खिलखिलाओ न
तरन्नुम-ए-परस्तिश-ए-मोहब्बत फिर गुनगुनाओ न !

जलाकर समझदारी के पन्ने कोई बेतुकी बात बताओ न
खामोशियों की गुल्लक तोड़ बस यूँही चिल्लाओ न !

कस के सीने से लगाकर पीठ पर मुक्के बरसाओ न
आग बबूला भृकुटी ताने जीभ दिखाकर चिढ़ाओ न !

रंगों की रंगत खिले जिस्म में ठहरी न बुँदें सुखाओ न
ये धड़कने मुस्कुराने लगे छींटे गेसुओं से झटकाओ न !

कुछ रहम करो सुरमई नैनों में न और काजल लगाओ न
ये आईना भी रक़ीब है मेरी आँखों से काम चलाओ न !

ये खुली आवारा जुल्फें एक ओर करो और सहलाओ न
थके मन को आराम आए एक बार फिर मुस्कुराओ न !!

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14 FEB AT 21:04

डूब गया धूप सेकता किनारा उसने यह कैसा कहर ढा दिया
लहरें बुलाती रही आग़ोश में वो पलटा और मुस्कुरा दिया !

जालिम सजता है सवंरता है रोज़ क्या क्या जुल्म करता है
उन्हें मुस्कुराकर देखता है आईने को भी इश्क़ सिखा दिया !

एक अरसे से मयख़ाने बन्द हैं मय-ख़्वारों के इस शहर में
कुछ बातें उनकी कुछ निगाहों ने ज़माने भर को बहका दिया !

लहराती ज़ुल्फ़ों का ख़ौफ़ क्या कम था आज़ाद परिंदों में
एक हवा का झोंका आया और उसका आँचल लहरा दिया !

गुल-ओ-गुलिस्तां में रोष है बहुत और भँवरे भी हैरान हैं
वो गुजरा था यहाँ से अभी अभी और मौसम महका दिया !

एक गुलाब चूमा उसके लबों ने रँग-ए-मोहब्बत बना दिया
उसकी सदाओं ने पत्थर दिल तराशा ताजमहल बना दिया !!

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दिल कभी बुझने लगे एक ख़्याल जुगनू सा जलता है
अकेली याद ही नहीं आती उनकी खुशबू भी आती है !!

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2 FEB AT 20:30

व्यग्र व्याकुल नितान्त निर्वात
उद्विग्न उत्पात मानस आघात !

समग्र सामरिक द्वन्द्व अभिलाष
वदन विषाद पयोधि आत्मसात !

विरह विक्षेप विडम्बना विख्यात
स्मृति विस्मृति भीषण आर्तनाद !

उद्दण्ड उत्तुंग उर्मिल मनोभाव
गोधूलि बेला अभिग्रह अभिसार !

तत्वक मिहिका शिशिर हिमपात
दत्तचित्त मृत्तिका अभ्यर्चन श्वास !!

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13 DEC 2023 AT 22:20

ये बिखरी जुल्फ़े हैं या कोई ज़लाल है
यूँ ही झुकी पलकें हैं या कोई चाल है !!

उफ्फ हुस्न है या गणित का सवाल है
भीनी सी मुस्कान है या मेरा ख़्याल है !!

ठहर जाएं सभी कुछ ऐसा कमाल है
ऐसी रंगत है उनकी या नया साल है !!

दीद-ए-तस्वीर कश्मकश-ए-हयात है
हर लम्हा उम्र-ए-क़ुर्बत-ए-जमाल है !!

रुख़ से चाँदनी बरसती है बेपर्दा रात है
एक झलक आफ़त में क़ल्ब ओ जान है !!

ख़्वाबों का आँचल संगमरमर की मीनार है
ख़्वाहिशों का ताज है या कोई ख़्याल है !!

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2 DEC 2023 AT 22:15







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29 NOV 2023 AT 22:03

सुबह सवेरे दिन चढ़े मैं रात ही रह जाऊँ
कच्ची नींद न टूटे ओ ख़्वाब ही रह जाऊँ !!

चूल्हे में सिकी रोटी का स्वाद ही रह जाऊँ
धधकती आग से बस राख़ ही रह जाऊँ !!

शम'अ रौशन हो या अल्फ़ाज ही रह जाऊँ
जलता रहे परवाना अश'आर ही रह जाऊँ !!

न अब तुझ तक पहुँचे आह ही रह जाऊँ
लड़खड़ाती मंजिल की राह ही रह जाऊँ !!

धूप में जर्द हो गई मुस्कान ही रह जाऊँ
धुंधली तस्वीर की आवाज़ ही रह जाऊँ !!

साँझ के किनारे ठहरी नाव ही रह जाऊँ
रात दर रात भटकता ख़्याल ही रह जाऊँ !!

तोड़ दूँ ये आईना आज़ाद ही रह जाऊँ
जाने किस दिन बस याद ही रह जाऊँ !!

इज़्तिरार आती जाती श्वास ही रह जाऊँ
परस्तिश-ए-मोहब्बत ताज ही रह जाऊँ !!

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