गीतेय जय   (◦•●◉✿🅙🅟✿◉●•◦)
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Joined 10 February 2019


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अंत में

तन, मन, धन, जीवन,
साथ, वादे, नाते, यादें,
क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, लोभ,
प्राण, प्रतिष्ठा, पीड़ा, प्रेम

सब छूट जाता है !!

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28 APR AT 22:57

आसमाँ की कशिश-ओ-उल्फ़त में बीज बाहें फैला के शज़र हो जाता है !

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27 APR AT 0:01


💝💝💝
💐💐💐

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25 APR AT 20:03








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21 APR AT 22:11

दिन रात पत्थरों को सींचने से भी उसमें फूल नहीं खिलते
बीज का जज़्बा पत्थर फाड़ आसमान छूने निकलता है !!

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20 APR AT 19:17

अथाह सागर को भी किनारे पर डूबते हुए देखा
मैंने मेरा मुझमें मैं खोजते ख़ुद को गुमते हुए देखा !

आते जाते मिलता जुलता याद रहता था अक्सर
ये कौन अजनबी आईने को कहते सुनते हुए देखा !

बादलों की क्या औकात बिन बरसे गुज़र जाएं
कई शामों में मुस्कुराहटों को सुबकते हुए देखा !

आसमाँ पर्वतों के कांधे पर सिर झुकाए रोता रहा
जलधारा में चट्टानों को रेत बन बिखरते हुए देखा !

उलझन सुलझाने में मुंसिफ़ कब उलझा जहान में
इल्ज़ाम किसे दें इसी उलझन में उलझते हुए देखा !

रात भर जलकर चिराग़ों ने सवेरा किया तो मगर
चुंधियाती रौशनी में उजाला भी सिमटते हुए देखा !

बचा-कुचा सा मैं बन्द रहा तेरे दिए गुलाब के साथ
पन्ने खोलकर छूते ही ख़ुदको धूल बनते हुए देखा !!

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28 MAR AT 21:21

Collab प्रतियोगिताओं
के विजेताओं की रचनाएँ
पढ़ने पर कई बार लगता है
कि क्या AI द्वारा रचित रचनाओं
को AI द्वारा ही विजेता चुन
लिया जा रहा है ??

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25 MAR AT 21:18

भारी जीवन भर के दुख पर

कभी

एक लम्हे का दुख
भारी जीवन भर के सुख पर !!

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12 MAR AT 18:42

चिड़िया ! क्या सोचती है?
ये तो चिड़िया ही जाने !

छज्जे पर एक घोंसला भी नहीं
घर कब से हो गए वीराने !

अपने अपने में ही व्यस्त
अपने अपनों से भी बेगाने !

ऊँचे पक्के घर टूटे हुए हैं
थामे हुए हाथ भी छूटे हुए हैं !

तेरे दाने चुगकर मानव न हो जाऊँ
धरती माँ के भक्षक दानव न हो जाऊँ !

बर्बादी की ओर आबादी चली है
आबादी से ही दूर आज़ाद भली मैं !!

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7 MAR AT 19:05

कभी कभी मैं यह सोचता रहता हूँ
तुझे मैं इतना क्यों सोचता रहता हूँ !

क्या चाँद तोड़कर रख लूँगा जेब में
मैं आसमाँ इतना क्यों नोचता रहता हूँ !

बहुत अन्धेरे हैं उजले चेहरों में पसर
रात को शब भर क्यों रोकता रहता हूँ !

यूँ ही अक्सर मेरा मुझमें मैं ढूंढते ढूंढते
मुसलसल तेरे घर क्यों लौटता रहता हूँ !

हाथ छूटे बाद उसके वक़्त ठहरा ही रहा
लम्हें उस मोड़ पर क्यों खोजता रहता हूँ !

दौलत शोहरत सूरत अनमोल जहान में
मैं सादा सरल मन क्यों टोहता रहता हूँ !

यह दुनियादारी दुनिया वाले ही जाने
मैं इस ग़ैर डगर क्यों दौड़ता रहता हूँ !!

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