— % &
— % &-
ये पन्ने जमुना का किनारा है
भावनाएं सफेद पत्थ... read more
प्रकृति आलिंगन हेतु तटिनी तट पर बाहें फैलाई हैं
मुस्कुराहटों के अधरों पर भी कैसी मुस्कान आई है !
उद्दण्ड उत्कंठित पवन उत्छृंखल केशों को उकसाए
यूँ मादक मौसम है चहुँ ओर उनकी महक छाई है !
करवट पलट पलटकर निशिभर अम्बर जागा रहा
मेघाँचल हटाकर मानसून ने रवि रश्मि चमकाई है !
केशों में शोभित कुसुम ने वसन्त को श्रृंगार सीखाया
विस्मित हैं कलियाँ उपवन में रोष की लहर छाई है !
मैं मेघ आच्छादित नील गगन सा गुलाबी हो जाऊँ
संध्या काल ज्यों सूर्य धरा मिलन की बेला आई है !
इस मंजुल पथ पर पुलकित पथिक का पड़ाव पड़ा
मन की आपाधापी ठहरी गति की गति अलसाई है !
मूक सरिता धीर पर्वत अविकल मेघ हर्षित हरियाली
वसन्त के नज़ारों ने भी कहा वसन्त पर वसन्त छाई है !!-
इश्क़ इश्क़ तो सब करें, इश्क़ करे न कोय
जो सब इश्क़ करें, इश्क़ इश्क़ करे न कोय !!
-
इंतिज़ार में सरकशी¹ घटाओं की गर्जना गूँजे
दीद-ओ-शुनीद² में, ख़ुशी ज़रा सी रिमझिम हो !
याद में डूबे सूरज की उदास लाली साँझ सी
मिले नज़र तो आसमाँ में जुगनू झिलमिल हों !
लहरों में किनारों पर, बिखरी भीगी भागी रेत
ग़र पुकारो नाम मेरा, रेज़ा रेज़ा तबस्सुम³ हो !
क़ल्ब-ए-मजरूह⁴ शम'अ जला के राह देखे
पास बैठे रहो ग़र, फिर हर लम्हा मरहम हो !
ख़ला⁵ में आवाज़ छटपटाती है सुने जाने को
पूछो जो हाल मेरा, फिर ख़ामोशी तरन्नुम हो !
ख़्वाबों की धारा मुसलसल⁶ तेरे शहर पहुंचे
साथ दिलों का जैसे, जमना तीरे ताजमहल हो !
जैसे लहरें उठें पत्थरों में भी, ऐसी हलचल हो
बस तुम मुस्कुरा दो, मेरी ग़ज़ल मुकम्मल हो !!-
अंत में
तन, मन, धन, जीवन,
साथ, वादे, नाते, यादें,
क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, लोभ,
प्राण, प्रतिष्ठा, पीड़ा, प्रेम
सब छूट जाता है !!
-
दिन रात पत्थरों को सींचने से भी उसमें फूल नहीं खिलते
बीज का जज़्बा पत्थर फाड़ आसमान छूने निकलता है !!-